जय शिक्षा, जय संस्कृति, जय भारतमाता - विजय के पड़ाव
लड़ते रहेंगे, जीतेंगे और जीयेंगे।
विजय के पड़ाव
मैकॅाले तथा वामपंथी विचाराधारा वाले इतिहाकारों ने देश के प्रमुख संस्थानों में अपना वर्चस्व स्थापित किया है। उन्होने विश्वविद्यालय तथा एन.सी.ई.आर.टी की पाठ्य पुस्तकों में इतिहास का विकृत स्वरूप प्रस्तुत किया जिससे विद्यार्थीयों के सम्मुख इतिहास के वे स्वर्णिम पक्ष प्रस्तुत नहीं हुये, अपितु उनको यह पढ़ाया जा रहा है कि जो भी प्राचीन ज्ञान-विज्ञान हैं वह सब मनगढ़त है और उसमें कोई भी उपलब्धि नहीं है जिस पर गौरव किया जा सके।
एन.डी.ए सरकार के आने के पश्चात वर्ष 2000 में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या का मसौदा पूरे देश के सम्मुख रखा गया और इस नई शिक्षा नीति के अंतर्गत प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, देश का उज्जवल इतिहास, वैदिक गणित, संस्कृत सभी मज़हबों की विशेषताओं का अध्ययन, विद्यार्थीयों के लिये अनिवार्य माना गया था। उसी पाठ्यचर्या के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में वामपंथी विचारधारा के लोगों ने याचिका दायर की और सर्वोच्च न्यायालय में ‘‘ अरूणा राय व अन्य ’’ की दलीलों को खारीज कर, 2000 की पाठ्यचर्या को स्वीकृति प्रदान की गई। पाठ्यचर्या के आधार पर नई पुस्तकें लिखी गईं और उनका अध्ययन प्रारम्भ हुआ।
अब सप्रसंग सरकार आई उन्होंने 2005 में पाठ्यचर्या का सृजन किया और सब समाप्त किया जिसको सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकृति प्रदान की थी। फिर से पुस्तकों के साथ छेड़-छाड़ की गई और इतिहास में विकृतियों को लाया गया। तथ्यों को झुठलाया गया और न्यायालयों के निर्णयों को नकारा गया। इतिहास की विकृति का एक जधन्य अपराध पूर्ण षडयंत्र विद्यार्थीयों के सम्मुख परोसने का प्रयास हुआ और यहीं से ‘‘ शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति ’’ ने इस धृणित कार्य का विरोध करना शुरू किया और उसमें अनेक लड़ाईयों में विजय प्राप्त की। यह सत्य है कि युद्ध तो अभी शेष है जिसमें जीत प्राप्त करनी है।
विजय के कुछ पड़ावों पर हम यदि नजर डालें तो:-
सर्वप्रथम दिल्ली विश्वविद्यालयों के मुक्त अध्ययन विद्यालय की बी.ए. पास इतिहास वर्ष द्वितीय प्रश्न पत्र- 2 की अध्ययन साम्रगी- 3 (22-33) आधुनिक भारत के इतिहास में जहुर सिद्धकी ने ‘‘ साम्प्रदायिकता ’’ लेख में लिखा 1925 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की स्थापना डा0. हेडगेवार ने की। राष्ट्रप्रेम की भावना के स्थान पर इन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद को जन्म दिया। डा0 हेडगेवार एक सुप्रीम डिकटेटर थे और इन्होने जर्मनी, ईटली, तथा जापान की फासिस्ट पार्टियों से प्ररेणा प्राप्त की। मुसलौनी अपने अनुयायीयों को काले कुर्ते पहनाते थे। डॅा हेडगेवार ने स्वंयसेवकों के सर पर काली टोपी पहना दी। सरदर पटेल ने आर.एस.एस. का साथ दिया और उन्होने साम्प्रदायिकता को बढ़ाने में शर्मनाक भूमिका अदा की और उन्होंने गांधी जी और नेहरू को भी सहयोग नहीं किया। इस लेख का विरोध किया गया और उपकुलपति देहली को विरोध पत्र लिखा गया। रोष प्रकट करने के लिये जलसा, जलूस तथा गोष्ठियों से समाज प्रबोद्धन के कार्य सम्पन्न किये गये। इस प्रयास से अनर्गल एवं मनगढ़त लेखन से मुक्त अध्ययन परिसर से विद्यार्थीयों को मुक्त कराकर शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति ने प्रथम जीत प्राप्त की।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त अध्ययन विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के द्वारा ‘‘ भारत में धार्मिक चिन्तन और आस्था ’’ पर जो सामग्री विद्यार्थीयों को पढ़ाई जा रही थी उसमें हिन्दू धर्म और इसके पूज्य देवी- देवताओं का घोर अपमान किया गया। इस प्रोग्राम के संयोजक थे प्रो. ए. आर. खान और प्रो. स्वराज बसु ने इस सामग्री को संजोया और इसमें कहा गया कि ‘‘ शिवजी ओधड़ तपस्वी थे जिनके बदन पर राख मली होती थी और श्मशान उनका उपासना का स्थल था, वो नग्न रहने वाला साधु पुरूष था और तपस्वियों और देवताओं की स्त्रियों का शीलभंग करता था। शिवजी के इस स्वरूप ने हिन्दुओ की भावनाओं को आह्त किया और इसमें आगे दुर्गा मां को भी अपमानित करते हुये लिखा गया कि वह सदा शराब के नशे में धुत रहती थी और उसकी आंखे सदा रक्तरंजित थी। वह तामसी वृतियों की एक देवी थी। इन सब कथनों से हिन्दू समाज चीतकार कर उठा। शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के आह्वान पर पूरे देश में स्वतः से ही भंयकर आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। दूरदर्शनों पर पुस्तक के अंशो का प्रसारण होते ही दिल्ली, बनारस, इलाहाबाद तथा गौरखपुर में ईग्नों के कार्यालयों को ध्वस्त कर दिया गया और चार दिन में ही श्री अर्जुन सिंह की कुम्भकरणी नींद खुली और उन्होंने इन अंशों को पाठ्य पुस्तकों में से निकालने का आदेश दिया। राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस षडयंत्र की जांच पड़ताल प्रारम्भ करा दी जो अब तक भी जारी है।
दूसरे चरण के उपरान्त फिर से दिल्ली विश्वविद्यालय में लज्जापूर्ण वर्णन इतिहास की बी.ए. (आर्नस) द्वितीय वर्ष की पुस्तक ‘‘ कल्चर इन एंशियट इंडिया ’’ में पढ़ने को मिला। पुस्तक को देखने पर हैरत हुई जब यह पाया गया कि इन लेखों की संग्रहकर्ता डा. उपन्द्रिा सिंह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पुत्री हैं। लेख ए.के. रामानुजम का है।
☞विद्यार्थियों को जो पढ़ाया जा रहा है।
रावण और मंदोदरी की कोई सन्तान नहीं थी। दोनों ने शिवजी की पूजा की। शिव जी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिये आम खाने को दिया। गलती से सारा आम रावण ने खा लिया और उसे गर्भ ठहर गया। बड़ी स्वच्छन्दता से रावण के नौ मास के गर्भधारण की व्यथा का वर्णन किया गया है।
दुःख से बेचैन रावण ने छींक मारी और सीता का जन्म हुआ। सीता रावण की पुत्री थी। उसने उसे जनकपुरी के खेत में त्याग दिया।
हिन्दुओं की मति भ्रमित करने के लिये कहा गया कि हनुमान छुट भैया एक छोटा सा बन्दर था। हनुमान की अवमानना करते हुए लिखा गया है कि वह एक कामुक व्यक्ति था वह लंका के शयनकक्षाओं में झांकता रहता था और वह स्त्रियों और पुरूषों को आमोद-प्रमोद करते बेशर्मी से देखता फिरता था। रावण का वध राम से नहीं लक्ष्मण से हुआ। रावण और लक्ष्मण ने सीता के साथ व्यभिचार किया।
विश्वविद्यालय में संघर्ष प्रारम्भ हुआ, शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के निर्देश पर पूरे देश में प्रदर्शन तथा धरने दिये गये। दिल्ली विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद के प्रभावकारी विरोध के उपरान्त 7 विद्यार्थियों को गिरफतार किया गया और 1 महीने तक जमानते होती रहीं। अब विद्यार्थी जमानत पर रिहा हैं। शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति की ओर से प्रसिद्ध राष्ट्रविदों श्री दीनानाथ बत्रा, राष्ट्रीय संयोजक शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति, डा. रविन्द्र नाथ पाल, भूतपूर्व उपकुलपति पटियाला विश्वविद्यालय, श्री विद्यासागर वर्मा, भूतपूर्व राजदूत, आचार्य सोहनलाल रामरंग, प्रसिद्ध साहित्यकार, डाॅ. पायल मग्गों, प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय, श्री महेशचन्द्र शर्मा, पूर्व महापौर दिल्ली, श्री रामगोपाल अग्रवाल, प्रधानाचार्य सरस्वती बाल मंदिर नेहरू नगर, दिल्ली, श्री अतुल रावत, प्रसिद्ध इतिहासकार ने याचिका दर्ज कराई और माननीय न्यायधीशों ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति तथा एकेडेमिक काऊंसिल को नोटिस जारी कर दिये और इस मुकद्धमें की सुनवाई 19 मई 2008 को होगी।
एनसीईआरटी द्वारा लिखित 6 से 12वी तक इतिहास की पुस्तकों में आपत्तिजनक अंशो के लिये देशभर में 200 गोष्ठियाँ सम्पन्न हुई। जंतर-मंतर दिल्ली तथा अनेक स्थानो पर प्रदर्शन हुये। इन पुस्तकों में कहा गया था कि हमारे पूर्वज गोमांस खाते थे, राम और कृष्ण का कोई भी ऐतिहासिक अस्तित्व नहीं था, भगवान महावीर 12 वर्षो तक भटकते रहे और इस लंबी यात्रा के दौरान उन्होंने एक बार भी वस्त्र नहीं बदले, गुरूगोविन्द सिंह मुगलों के दरबार में मनसब थे, गुरू तेग बहादुर लुटेरे थे, जाटों को लुटेरा बताया गया और कहां गया कि शिवाजी धोखेबाज थे, औरंगजेब जिंदापीर था, स्वामी दयानन्द ईसाईयों से पैसे लेते थे ओैर इन्होंने राष्ट्रीय एकता को भंग किया। तिलक, अरविंद घोष, विपिनचन्द्रपाल, लाला लाजपतराय जैसे नेताओं को उग्रवादी तथा आतंकवादी कहा गया। उच्च न्यायालय में 2 फरवरी 2007 को श्री एम. के. शर्मा मुख्य न्यायधीश तथा हेमा कोहली न्यायधीश ने कहा कि देश में सम्मानित नेताओं के सम्बन्ध में जो इस प्रकार की टिप्पणी और कुछ सम्प्रदायों को लुटेरा कहा गया है उचित नहीं है और इस के लिये ऐसे कोई भी पाठ नहीं पढ़ाये जाने चाहिय। अन्तिम निर्णय मे श्री टी. एस. ठाकुर तथा अरूण सुरेश, माननीय न्यायधीशो ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने छठी से बारहवीं तक की पुस्तकों के सम्बन्ध में आन्दोलित करने वाले अंशो को सामने लाकर प्रशंसनीय कार्य किया है। इस पर एनसीईआरटी के वकील प्रशांत भूषण ने विश्वास दिलाया कि अप्रैल 2008 से किताबो मे से सभी आपतिजनक अंश हटा दिये जायेंगे। यह शिक्षा बचाओ आन्दोलन की शानदार जीत थी। अब थोड़ा जीता है अभी बहुत कुछ जीतना शेष है।
सेन्ट्रल बोर्ड की राजनीति शास्त्र की पुस्तक में कहा गया है कि मानव अधिकार आयोग के पास व्यक्ति तब जाता है कि जब उसके साथ अन्याय होता है जैसे गुजरात में हुये दंगो में 2,000 से अधिक लोग मारे गये और उसमें अधिकतर मुसलमान थे। हमारी याचिका के दौरान यह अंश हटा दिया गया है। अगली सुनवाई होनी है। पुस्तक में गुजरात का ही केवल उदाहरण क्यों दिया गया है? दिल्ली, महाराष्ट्र, भागलपुर, आदि स्थानों पर हुये दंगों का वर्णन नहीं किया गया। ऐसा करना राजनीति से प्रेरित है।
यौन शिक्षा भी एक देशव्यापी आन्दोलन का विषय बना। राज्यसभा और संसद में इस पर सदस्यों ने खेद प्रकट किया। व्यय सन्धि की अवस्था में इस प्रकार की शिक्षा देश के विद्यार्थीयों में चरित्रहीनता को बढ़ावा देती हैं। इस पर राज्य सभा के 10 सदस्यों की उपसमिति गठित की गई और पूरे देश से विचार आमंत्रित किये गए। शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति की ओर से पूरे देश से यौन शिक्षा के विरूद्ध 40,000 हजार लेख तथा 4 लाख 15 हजार हस्ताक्षर की एक याचिका भी प्रस्तुत की गई। किसी भी विषय पर देश का यह सबसे बडा शैक्षिक जागरण अभियान है। 11 प्रदेशों नें इस पर प्रतिबंध लगाया है। संतो महात्माओं ने इसका विरोध किया है। जैन मुनी विजयरत्नसुदंर सुरेश्रवर जी महाराज साहेब, योग गुरू स्वामी बाबा रामदेव जी ने कड़े शब्दों में इसका विरोध किया है। समिति अपनी रिपोर्ट लिखने के अंतिम चरण में है।
एनसीईआरटी की हिन्दी की पुस्तकों के सम्बन्ध में एक याचिका लंबित है। जिसमें हिन्दी भाषा को लेकर कहा गया है कि इसे बहुभाषीय बना दिया गया है। इसमें अंग्रेजी, ऊर्दू , फारसी, शब्दों की भरमार है। एक अंग्रेजी की कविता भी है। ऐसे शब्दों का प्रयोग है जिसके बोलने पर कानूनी रूप से दंडित भी किया जा सकता है जैसे चमार, भंगी, अछूत तथा भाषा में गाली- ग्लोच, हरामजादा, हरामखोर, शब्द हैं जो विद्यार्थीयों को निश्चय ही अशिष्ट बनायेंगे। पुस्तकों में मीरा तथा अक्क महादेवी का अपमान भी किया गया हैं वहां दूसरी और फिदा हुसैन और नक्सलवादी कवि पाश की महिमा मंडित की गई हैं। धूम्रपान, अंधविश्वास, जादू टोना, ढ़कोसला, बालकों को परम्परावादी तथा पिछड़ा बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। याचिका की सुनवाई 23 जुलाई 2008 को होनी है।
☞अब तैयारी है दिल्ली विश्वविद्यालय के विरूद्ध एक नई याचिका की। बी.ए. पार्ट-1 में इतिहास की पुस्तक इसमें वर्णित हैं कि:-
ऋृग्वेद में कहा गया है कि स्त्रियों का स्थान शूद्रों तथा कुतों के सामान है।
स्त्रियों को वेद पढ़ने पढ़ाने का कोई भी अधिकार नहीं था और न ही वह धार्मिक क्रिया कर्म कर सकती थीं।
अर्थवेद में महिलाओं को केवल संन्तान उत्पति का साधन माना जाता था।
लड़कियाँ उनके लिये अभिशाप थीं।
स्त्रियां एक वस्तु समझी जाती थीं उन्हें खरीदा तथा बेचा जा सकता था।
वेदों के अर्थो का अर्नथ कर महिलाओं को घृणा की दृष्टि से दिखलाया गया है।
अमेरिकन लेखिका वेन्डी डोनिग लिखित ‘‘ द हिन्दूज- एन आल्ट्रनेटिव हिस्ट्री ’’ पुस्तक में
गांधी जी एक विचित्र व्यक्ति थे जो छोटी- छोटी लड़कियों के साथ सोते थे। पृष्ठ-625
स्वामी विवेकानन्द ने लोगों को गोमांस भक्षण का सुझाव दिया -पृष्ठ-639
लक्ष्मी बाई अंग्रेजो के प्रति निष्ठावान थी -पृष्ठ-586
हिन्दुओं का कोई मूलग्रन्थ नहीं है -पृष्ठ25
सीता लक्ष्मण पर आरोप लगाती है कि लक्ष्मण की उनके प्रति कामभावना है-पृष्ठ14
इस पुस्तक के विरूद्ध भारत और अमेरिका में आन्दोलन शुरू किया गया। इसके परिणामस्वरूप् अमेरिका में इस पुस्तक हेतु वेण्डी डोनिगर को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिया जाने वाला था वह रूक गया है।
दिल्ली साकेत न्यायालय में इसके विरूद्ध याचिका दायर की गई है न्यायालय ने लेखिका वेण्डी डोनिगर एवं प्रकाशक को नोटिस भेजा है।
सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा-2011- अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनाने का षडयंत्र।
अभी तक सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा में दो प्रश्न-पत्र हुआ करते थे और अंग्रेजी अनिवार्य नहीं थी। इस वर्ष 12.6.2011 को सम्पन्न हुई इस परीक्षा के द्वितीय प्रश्न-पत्र में 22.5 अंक की अंग्रेजी अनिवार्य कर दी गई है। इस अन्याय के विरूद्ध महामहिम राष्ट्रप्रति, प्रधानमंत्री, गृहकार्मिक मंत्री एवं अध्यक्ष लोक सेवा आयोग आदि को पत्र लिखे गये।
इसी दिशा में न्यास ने ‘‘ अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी समिति ’’ का गठन भी किया है, जो इस विषय पर पूर देश में जनजागरण का अभियान चलायेगी।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के उद्देश्य एवं कार्य योजना।
शिक्षा के क्षेत्र में देशव्यापी जनजागरण।
शिक्षा के पाठ्यक्रम, व्यवस्था, पद्धति एवं नीति में परिवर्तन करते हुए नए विकल्प तैयार करना। इस हेतु परिसंवाद, संविमर्श, संगोष्ठी, परिचर्चा एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना।
शिक्षा के विभिन्न विषयों हेतु वैकल्पिक पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तक, प्रशिक्षण हेतु सामग्री, अभिभावकों के मार्गदर्शन हेतु साहित्य एवं सन्दर्भ साहित्य तैयार करना।
शिक्षा क्षेत्र से प्रत्यक्ष जुढ़े ऐसे छात्र, शिक्षक, शिक्षाविद् शिक्षा संस्थानों के संचालक, प्रशासनिक अधिकारी आदि को इस प्रक्रिया में सम्मिलित करना।
इन सारे प्रयास में विद्यालयों, शैक्षिक संस्थानों, शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत संगठनों को सक्रिय रूप से जोड़ना।
यह प्रयास विकेन्द्रित एवं देशव्यापी हो।
देशभर के प्रयासों को संकलित करके शिक्षा के वैकल्पिक प्रारूप तैयार करना।
इस पाठ्यक्रम को राज्यों की सरकारे, केन्द्र सरकार तथा निजी शैक्षणिक संस्थाएं स्वीकार करे, इस हेतु भी प्रयास करना।
इस हेतु किए जा रहे कार्य एवं आगे की योजना।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा छः विषयों पर कार्य शुरू किये गए है।
चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की शिक्षा
दिनांक 21, 22 फरवरी 2009 को पुणे (महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय स्तर के परिसंवाद में 13 राज्यों से 140 विद्वान सहभागी हुए। चर्चा-चिन्तन के बाद विकल्प हेतु प्रारूप बताया गया तथा एक पाठ्यक्रम समिति का गठन किया।
‘‘ चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की शिक्षा ’’ के नाम से प्रस्तावित पाठ्यक्रम तैयार किया गया।
इस पाठ्यक्रम पर राष्ट्रव्यापी बहस एवं सुझाव हेतु देश के सात केन्द्रों पर क्षेत्रीय परिसंवाद हुए जिनमें 16 राज्यों से 1280 लोग सहभागी हुए।
इन परिसंवादों में आये सुझावों पर पाठ्यक्रम रहेगा लेकिन छात्रों हेतु वर्तमान विद्यालय की योजना व्यवस्था में ही सम्मिलत किया जा सके, इस प्रकार के कार्यक्रम का स्वरूप तैयार किया है।
प्रायोगिक तौर पर इस कार्यक्रम को लागू करने हेतु दिनांक 16 से 18 अप्रैल 2010 को देशभर के 50 विद्यालयों के प्रधानाचार्य की एक कार्यशाला सम्पन्न हुई। इन विद्यालयों में इस कार्यक्रम को लागू किया जा रहा है।
मूल्य परक शिक्षा
इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर की 3 तथा प्रान्तीय स्तर की 7 गोष्ठियां एवं परिसंवाद सम्पन्न हुए है इनमें 33 से अधिक प्रान्तों से 1608 लोग सहभागी हुए है।
आगामी दिनों में उच्च शिक्षा की दृष्टि से विभिन्न संकायों (फैक्लटी) के पाठ्यक्रमों में मूल्यों का समावेश कैसे किया जाए इस हेतु दिनांक 11,12 दिसम्बर 2010 को पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय में ‘‘ तकनीकी शिक्षा में मूल्यों का समावेश ’’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इसी विषय पर दिनांक 8, 9 अक्टूबर 2011 को सरकारी इंजीनियरिंग महाविद्यालय उज्जैन में राष्ट्रीय स्तर का परिसंवाद आयोजित किया जा रहा है। इसी प्रकार चिकित्सा एवं प्रबन्ध शिक्षा में मूल्यों के समावेश को भी योजना बनाई जा रही है।
वैदिक गणित
8, 9 अगस्त 2009 से इस कार्य को शुरू किया गया। इस विषय के विद्वानों की एक टोली का गठन किया गया है। अभी तक विद्वानों की कई बैठकें सम्पन्न हुई। 2010 में ’’वैदिक गणित अतीत, वर्तमान एवं भविष्य’ विषय पर छः परिसंवाद (सेमिनार) किये गये। वर्तमान में राज्य एवं स्थानीय स्तर पर कार्यशालाओं का विषय पर पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जा रहा है:-
वैदिक गणित शोध संस्थान
चार विभागों में कार्य शुरू किया जा रहा हैः-
कक्षा 1 से 12 तक समग्रता से पाठ्यक्रम तैयार करना।
उच्च शिक्षा में वैदिक गणित के समावेश हेतु तैयारी करना।
प्रतियोगी (कोम्पेटीटीव) परीक्षा में वैदिक गणित का उपयोग।
वैदिक गणित एवं संगणक (कम्प्यूटर) पर कार्य को आगे बढ़ाना।
यह संघर्ष का इतिहास जहां शानदार है वहां अधिक सजग रहने की प्ररेणा देता है । लड़ते रहेंगे, जीतेंगे और जीयेंगे।
जय शिक्षा, जय संस्कृति, जय भारतमाता!