प्राथमिक अनिवार्य शिक्षा अभियान

प्राथमिक शिक्षा के अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन एक राष्ट्रीय दायित्व है

प्राथमिक अनिवार्य शिक्षा अभियान

-विद्यालयों में विद्यार्थियों की पहुँच

- प्राथमिक शिक्षा के अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन एक राष्ट्रीय दायित्व है, कानून पास होने से समस्या का निदान नहीं हो सकेगा। निरक्षरता का यह काला धब्बा मिटाने के लिए यह आवश्यक है कि हम सब देशवासी अपने को समझें और इस महत्त्वपूर्ण कार्य को सफल बनाने में अपना सृजनात्मक सहयोग प्रदान करें।

(क) राजनैतिक स्तर: संसद सदस्य लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभा ऐसी सब संस्थाओं के द्वारा निम्नलिखित दायित्व निश्चित करना आवश्यक है:-

  1. देश के सभी संसद क्षेत्रों के संसद सदस्यों का यह दायित्व होना चाहिए कि वह जो सामाजिक कार्यो के लिए निधि प्राप्त करते है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिवर्ष 10 करोड़ रूपये का व्यय करे। क्रमशः किसी एक पिछड़े विधानसभा क्षेत्र का चयन करके वहां पर एकल विद्यालय खोलने का अभियान प्रारंभ करें। 50 विद्यालयों पर एक वैतनिक निरीक्षक नियुक्त करें तथा निरीक्षक को एक वाहन भी उपलब्ध कराएं जिससे कि वह इन विद्यालयों का निरीक्षण करता रहेगा। विद्यालयों के संकुल के लिए एक शिक्षा अधिकारी होगा जो शैक्षिक स्तर के लिए आचार्यो का प्रशिक्षण कराएगा और विद्यालयों में जाकर सभी कार्यो की जांच करता रहेगा।
  1. यही क्रम विधान सभा क्षेत्र, नगर निगम, पंचायत में भी प्रारंभ होगा। इस कार्य के लिए सभी संस्थाएं अपना बजट बनाएंगी और वह भी वित्तिय साधनो का सदुप्रयोग करने के लिए निश्चित क्षेत्रों का चयन कर सधन कार्य करेंगे।
  1. सभी संस्थाओं ने जो इस कार्य के लिए व्यय किया होगा उसका लेखा निरिक्षक (सी.ए) से कराकर सम्बन्धित कार्यालय को व्यय का ब्यौरा भेजना होगा। सभी राज्यों के शिक्षा विभाग के अधिकारी जन अपने प्रवास पर जाएंगे इसके अन्तर्गत अपने विद्यालयों का निरीक्षण करते रहेंगे। 
  1. शैक्षिक संस्थाओं द्वारा- देश में प्रशिक्षण, महाविद्यालय तथा विद्यालय हैं। उपाधि तथा प्रमाण पत्र प्राप्त करने से पूर्व उनके लिए 6 मास का ग्रामों में साक्षरता अभियान के लिए योगदान रहेगा। प्राचार्यो, आचार्यो के कार्यों की प्रमाणिकता की जांच करेंगे तथा इस कार्य का प्रमाण-पत्र देंगे। सभी शिक्षार्थी जिनके पास यह प्रमाण-पत्र होगा उनको ही उपाधि तथा प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र दिया जाएगा।
  1. विद्यालयों में 365 दिनों में से 210 कार्य दिवस होते है। शेष लम्बे तथा अल्पकाल के अवकाश रहते है। नौवीं तथा ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की शक्ति को शिक्षा की विधेयक धारा से जोड़ना इसलिए आवश्यक होगा कि उनकी अति ऊर्जा को अच्छे कार्य से जोड़ा जाएगा। उनके समय का सद्प्रयोग होगा, उनका सामाजिक, मानसिक विकास होगा। इससे शिक्षा का लक्ष्य भी पूर्ण होगा। यह योजना तभी सफल होगी जब प्रशिक्षण महाविद्यालयों तथा विद्यालयों की अवधि 2 वर्षो की जाएगी। विश्वविद्यालय तथा उच्च संस्थान (आई.आई.टी) आदि उन्हें अपने क्षेत्र के पास के 10 ग्रामों को अपनाना चाहिए और इस कार्य में उनका सृजनात्मक सहयोग होना चाहिए। इस प्रशंसनीय कार्य में प्रमाण-पत्र को उनकी उपाधि के साथ जोड़ देना चाहिए।
  1. स्वयं सेवी संस्थाएँ (एनजीओ) इस देश में विभिन्न विषयों को लेकर कार्य कर रही है और सरकार से अनुदान भी प्राप्त कर रही हैं ।अनुदान देने की भी यह प्रथम शर्त बनाई जा सकती है कि वह अपने कार्यो में कुछ ग्रामों को गोद लें और वहां साक्षारता अभियान तथा विद्यार्थियों को विद्यालय तक पहुँचाने, विद्यार्थियों की गुणवता आदि विकास के कार्य करें। ऐसे कितने ही विद्यार्थी हैं जो घरों में काम करते है तथा बाल मजदूर है, गलियों और सड़कों पर हैं। उनसे सम्पर्क करना उन्हें विद्यालय के जाने के लिए प्रेरित करना। यह भी इन संस्थाओं का दायित्व होना चाहिए।
  1. बाल श्रम कल्याण मंत्रालय आदि बालकों के लिए जो सरकारी संस्थान है उनको भी सांझी रणनीति बनाने की आवश्यकता है। जो माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय में इसलिए नहीं भेजते कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, क्योंकि उनके बालक उनकी रोजी-रोटी के लिए उनके सहयोगी हैं। सरकार को उनके माता-पिता तक यह अनुदान पहुँचे इसकी भी चिंता करनी है।
  1. इस देश में कितने ही संत, धार्मिक संस्थाए है जिनके पास करोड़ो रूपया है और उनके लाखों अनुयायी है। वह अपने अनुयायियों को प्रेरित कर सकते हैं। शिक्षा के इस यज्ञ में आहूति देना एक पुण्य कार्य है। वह नये विद्यालय खोले, चल रहे विद्यालयों की आर्थिक सहायता करें। गरीब बच्चों को विद्यालय में प्रवेश कराने में सहायता करें। उनके माता-पिता का भी सहयोग करें।
  1. उद्योगपति:- जितने भी बड़े उद्योगपति है। श्री प्रेम जी से प्रेरणा प्राप्त करें, उन्होंने घोषणा की है कि देश के प्रत्येक जिले में 12 कक्षा तक के विद्यालय उनकी भाषा में प्रारंभ करेंगे। उनके विद्यालय में संख्या तथा गुणवता का पूरा ध्यान रखा जाएगा। यदि सभी उद्योगपति यह कार्य अपने हाथ में ले ले तो देश का नक्शा ही बदल जाएगा। सरकार को भी ऐसे उद्योगपतियों की सहायता करनी चाहिए और उन्हें कर मुक्त करना चाहिए। यह योजना केवल अभियान नहीं है, अपितु यह सभी देशवासियों का स्वभाव होना चाहिए यह किसी के दवाब या प्रभाव से नहीं अपितु स्वयं की प्ररेणा से किया गया कार्य है। यह एक पवित्र यज्ञ है जिसमें प्रत्येक देशभक्त को अपनी आहूति डालनी चाहिए।

सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी अथवा आचार्य एवं अन्य पदाधिकारी यह न समझे कि सेवा से निवृत ना समझे अपतिु यह समझें कि यह समय सेवा प्रवृति का है और हमें सेवा में प्रवृत होना चाहिए। अपने जीवन की अंतिम बेला में कम से कम 50 विद्यार्थियों को पढ़ाये ताकि इनका स्वयं का जीवन सफल हो सकें।

 

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