बालिका शिक्षा

संवेदनशील, जनजातियों के कबीले तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग तथा मलिन बस्तियों में रहने वाली लड़कियो...

   यूसुफ अली की पुस्तक जिसमें उसने महिलाओं / बालिकाओं की शिक्षा के सम्बन्ध में जो विचार लिखे हैं वह विचार करने योग्य है। उसका कथन है कि जब तक लड़कियों की शिक्षा में सुधार नहीं होता तब तक भारत की स्थिति में सुधार की सम्भावना बहुत ही कम है। महिला को पुरूष का आधाअंग कहा जाता है और यदि शरीर का आधा भाग काम करना बन्द कर दे तो हम इसे पक्षाधात कहते हैं फिर वह व्यक्ति काम करने योग्य नहीं रह जाता। देश में बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति देखें तो देश की निष्क्रियता का चित्र सामने आता है। सभी अभिभावकों को इस सम्बन्ध में गभ्भीरता से विचार और लड़कों के समान लड़कियों को पढ़ाना अपने धर्म समझकर करें, अपने-अपने परिवार तथा देशहित में निज दायित्व का निर्वाह करना चाहिए।

    बालक और बालिकाओं की शिक्षा में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए। गांधी जी का कथन है कि प्रकृति ने लड़कियों को कुछ नैसर्गिक गुण दिये है उनमें कुछ अन्तर्निहित रूचियाँ तथा क्षमताएँ है जिसका शिक्षा के माध्यम से विकास होना चाहिए जैसे ललित कलाएँ, रंगोली, गृह विज्ञान, चिकित्सा परिचारिका, शिक्षा यह सब इन की प्रकृति के अनुकूल प्रिय विषय बन सकते हैं। बालिकाओं के इस दृष्टि के अनुकूल प्रिय विषय बन सकते हैं। बालिकाओं की इस दृष्टि से विशेष ध्यान होना चाहिए। गांधी जी का कथन है कि ‘महिलाओं विशेष ध्यान होना चाहिए, महिलाओं को घर में तथा पुरूषों को बाहर की दुनिया में शासन करना है। अतः दोनों के कार्य के अनुरूप शिक्षित करना उनके जीवन के विकास तथा सफलता के लिये लाभदायक हैं।

    लड़कियों की शिक्षा के सम्बन्ध में हमारी महती आकांक्षाएँ तभी पूर्ण हो सकती हैं जब पुरूष प्रामाणिकता से कार्य के लिये अग्रसर हो। महिलाएँ अब पुरूषों की दास तथा पैर की जूती अथवा मौज-मस्ती की वस्तु नहीं अपितु  वह परिवार जीवन की संगिनी, जीवन के संघर्ष में बराबर भागीदार हैं और उन्हें इस स्वरूप में रहना होगा और शिक्षा के इस दायित्व को निभाने के लिये उन्हें तैयार करें।

    संवेदनशील, जनजातियों के कबीले तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग तथा मलिन बस्तियों में रहने वाली लड़कियों तथा बच्चों के लिये पढ़ाई का विशेष प्रबन्ध तथा गहन प्रयास करने की आवश्यकता है।

    यह विचारणीय है कि भारत में 6-14 वर्ष तक के स्कूल से बाहर के चार करोड़ बच्चों में दो तिहाई लड़कियाँ है। ऐसा नहीं कि सुधार का कोई लक्षण नहीं परन्तु प्रत्येक स्तर पर परिवर्तन की दर पर्याप्त धीमी है।


सारिणी-1 प्रत्येक लड़कियों के नामांकन और समूचे नामांकन का प्रतिशत 
      

 

वर्ष   प्राथमिक     मिडिल   माध्यमिक / उच्च माध्यमिक और इण्टरमीडियेट  उच्च शिक्षा
1950&51  28-1 16-1  13-3 10-0
1960&61 32-6 23-9 20-5 16-0
1970&71 37-4 29-3 25-0 20-0
1980&81 41-5 32-9 29-6 36-7
1990&91 43-7 36-7 32-9 33-3
2000&02 43-7 40-9 38-6

39-4

 

46-8 43-9 41-4] 41-6 &



स्त्रोत: सेलेक्टेड एजुकेशनल स्टेटिस्टिक्स (अलग-अलग वर्षों से) मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, एम.एच.आर.डी. भारत सरकार 
’’ 7 वाॅ ऑल इंडिया एजुकेशनल सर्वे एन.सी.ई.आर.टी 


1. माध्यमिक के लिए
2. उच्च माध्यमिक के लिए

    सामाजिक - सांस्कृतिक और भौतिक वातावरण के रूप में लड़कियों की शिक्षा में निरन्तर अवरोध उपस्थित हो रहे है। सामाजिक कुरीतियाँ जैसे बाल-विवाह, भू्रण हत्या, दहेज-प्रथा, लैगिंक रूढ़िबद्धता।
    लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिये कुछ योजनाएँ तो आरम्भ हुई है परन्तु उन पर पुनः विचार करने और इनमें सुधार करना भी आवश्यक लगता है।
(क) दलित, आदिवासी, लड़कियों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें तथा  वेशवस्त्र दिये जा रहे है।
(ख) बालिका समृद्धि योजना एक केन्द्रीय सहायता प्राप्त योजना है जिसमें लड़कियों के लिये डाकखाने में एक खाता प्रारम्भ करने का प्रावधान था अनेक कार्यकारी समस्याओं के कारण इसके परिणाम आशाजनक नहीं रहे।
(ग) राज्यों में भी लड़कियों की शिक्षा के प्रोत्साहन के लिये अनेक रणनीतियाँ अपनाई। हिमाचल में लड़कियों के लिये उच्च शिक्षा तक निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की - दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश लड़कियों के लिये छात्रवृत्तियाँ देने की घोषणा की, आन्धप्रदेश ने प्रत्येक उस बच्ची को एक लाख रूपये देने की बात कहीं जो अभिभावाकें की एक मात्र सन्तान हो। गुजरात ने एक बालिका कोष प्रारम्भ किया जिसमें प्रत्येक लड़की को जन्म समय 5000 रूपये का बोन्ड दिया जाता है। कर्नाटक में घर तथा विद्यालय तक लड़कियों को आने-जाने की व्यवस्था की है। ऐसे सभी राज्यों ने लड़कियों की पढ़ाई के लिये अनेक आर्थिक सुविधाओं की योजनाएँ बनाई है और उनका क्रियान्वयन भी हो रहा है।
1. लड़कियों की शिक्षा के विकास के लिये केन्द्र तथा राज्यों में प्रोत्साहन योजनाओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है और      ऐसे उपाय अपनाये जाएँं कि प्रकृति तथा परिवेश ऐसा हो कि वे गरीब, घरेलू / बच्चों की देखभाल, माता का                    उत्तरदायित्व, बालिका मजदूरी, लड़कियों की शिक्षा को निम्न वरीयता, लड़कियों की शादी को पढ़ाई से अधिक महत्त्व      देने जैसे कारकों द्वारा उत्पन्न अवरोधों को पार कर सकें।
2. प्राथमिक  विद्यालयों को ग्रामों तक स्थापित और कुछ राज्यों में लड़कियों के लिये औपचारिक और वैकल्पिक                  विद्यालयों की भी योजना करना अपेक्षित है।
3. लड़कियों के लिये आगे की पढ़ाई को सुलभ बनाने के लिये आवासीय विद्यालयों की आवश्यकता को पूर्ण करने से            बालिकाओं का प्राथमिक कक्षा के पश्चात् पढ़ाई छोड़ देना रूक सकता है।
4. यह बात सर्वमान्य है कि लड़कियों के लिये अच्छे गुणवत्ता वाले नियमित स्कूलांे का कोई भी विकल्प स्वीकार्य नहीं          होना चाहिए।
5. आगंनबाड़ी केन्द्रों को विद्यालयों के समीप लाया जाए और उसमें काम करने के घण्टे वैसे ही  हो जैसे कि विद्यालयों          को घर में शिशुओं की देखभाल से मुक्त कराया जा सके जिससे वह विद्यालय में जा सकें।
6. शहर के झुग्गी-बस्तियों में शिशु देखभाल केन्द्रों को स्थान दिया जाना और कामकाज के स्थानों पर क्रैच की व्यवस्था        करना उचित तथा उपयोगी है।
7. विद्यालयों में महिलाओं के शिक्षिका के रूप में नियुक्त करने की वरीयता हो और विद्यालयों की प्रबन्ध समितियों में भी      महिलाओं की भागीदारी हो और अधिक मात्रा में हो।
8. विद्यालय पूर्व की शिक्षा के लिये शिशुओं को पूर्व प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने की व्यवस्था करें।
9. बालिकाओं की शिक्षा दर बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय आन्दोलन दर बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकारी तथा गैर सरकारी        स्तर पर इस आन्दोलन में सब का सृजनात्मक सहयोग चाहिए।

10. विद्यालयों में मध्यकालीन भोजन, किताबें, कपड़ों के साथ लड़कियों के लिये शौचालय की सुविधा यत्नपूर्वक की जानी        चाहिए। इस आन्दोलन में सब का  सृजनात्मक सहयोग चाहिए।

डाॅ0 मुदलियार  आयोग ने 1952 में लड़कियों की शिक्षा के लिये निम्नलिखित स्तुतियाँ की है।

  • लड़कियों के लिये गृह विज्ञान तथा व्यवसायिक शिक्षा के विविध के लिये पूर्ण सहयोग दिया जावे।
  • यथासम्भव लड़कियों के लिये पृथक विद्यालय स्थापित किये जाएँ।
  • समाजसेवी संगठनों को लड़कियों की शिक्षा में कार्य करने के लिए पूर्ण सहयोग दिया जावें।
  • लड़कियों तथा महिलाओं की समस्याओं का अध्ययन तथा निदान के लिये विशेष कार्य दल बनाया जावे जो निरन्तर व्यापक रूप से समस्याओं के निदान के लिये कार्य करता रहे। इस दल के लिये पर्याप्त धन की भी व्यवस्था रहनी चाहिए।
  • महिलाओं तथा लड़कियों के लिए राष्ट्रीय संस्थानों को स्थापित करना चाहिए।
  • राज्य के शिक्षा निदेशालयों में लड़कियों की शिक्षा की देखभाल के लिये सहनिदेशक की नियुक्ति की जाए।
  • महिलाओं तथा लड़कियों की शिक्षा के लिये शोध कार्य करने की भी आवश्यकता है।   

    कथित सुझावों तथा आयोगों द्वारा की गई संस्तुतियों पर प्रामाणिकता से कार्य करने पर लड़कियों की शिक्षा की समस्याओं का निदान किया जाता है। लड़कियों के शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम में एक अनिवार्य विषय, भारतीय संस्कृति, लड़कियों का राष्ट्रीय तथा सामाजिक कार्यो में योगदान, महान नारियां, भारतीय संस्कार तथा व्यक्तित्व विकास में उनका योगदान, पारिवारिक जीवन की सुधड़ता में महिलाओं की भूमिका आदि देश की धरती तथा संस्कृति से जुड़े विषयों को उस विषय में जोड़ कर प्रत्येक बालिका को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाए।
    एक लड़की की शिक्षा दो परिवारों के लिये लाभदायक है। सुसंस्कृत, सुशील लड़की सुसराल में जा कर भी उस घर को संस्कारक्षम बनायेगी। घर का संस्कारक्षम वातावरण वर्तमान परिस्थिति में अनेक समस्याओं का हल है आईये मिलकर प्रयास करें।

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