शिक्षा की चुनौतियाँ- निदान के लिए संघर्ष और परिणाम
हम कहते है "सा विद्या या विमुक्तेय, अब तो कहा जाता है सा विद्या या नियुक्तये" शैक्षिक स्तर के सम्बन्...
हमारे देश में अंग्रेज़ो से पूर्व शिक्षा का स्तर
गांधी जी ने जब कहा था अंग्रेजों के आने से पहले भारत में जो शिक्षा थी वह बाद में घटी है तो सर जॉन फिलिप ने चैलेंज किया था। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए दो पुस्तके प्रकाशित हुई थी। सुंदरलाल जी की पुस्तक भारत में अंग्रेजी राज में एक अध्याय है- भारतीय शिक्षा का सर्वनाश धर्मपाल जी ने जो पुस्तक छापी है, उसमें वे पूरे आंकड़े हैं जो यह बताते हैं कि 18वीं शताब्दी में भारतीय शिक्षा का ढांचा क्या था? कैसे पढ़ाई होती थी और उसमें खुद ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा एकत्रित आंकड़े हैं जिसमें यह स्पष्ट है कि शिक्षक किस-किस जाति के होते थे। उसमें लिखा है कि सभी जातियों के शिक्षक और सब जातियों के विद्यार्थी थे।
• विलियम एडम के द्वारा किया गया सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि सन् 1830-10 के वर्षों में बंगाल और बिहार के गांवों में 1,00,000 के लगभग पाठशालाएँ थी। चैन्नई प्रदेश के लिए भी ऐसा ही अभिमत टोमस मनरो ने व्यक्त किया था। उसने बताया था कि यहां प्रत्येक गांव में एक पाठशाला थी। इसी प्रकार मुंबई प्रेसीडेन्सी के जी.एल ऐन्टरगास्ट नाम वरिष्ठ अधिकारी ने लिखा है कि गांव बड़ा हो या छोटा, यहां शायद ही ऐसा कोई गांव होगा जहां कम से कम एक पाठशाला न हो। बड़े गांवो में तो एक से अधिक पाठशालाएं भी थी।"
श्री धर्मपाल जी ने 18 वीं शताब्दी में इस भारतीय शिक्षा को रमणीय वृक्ष कहा था और महात्मा गांधी जी ने आगे इंग्लैण्ड में जाकर यह चुनौती दी थी कि आपने हमारे इस रमणीय वृक्ष की जड़े काट दी है. और हमारी शिक्षा के स्वरूप को बिगाड़ दिया है।"
अंग्रेजो का अंधा अनुकरण
मैकॉले के निम्नलिखित विचार ध्यान देने योग्य है "हमें एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिसका रक्त और रंग दिखने में भारतीय हो, परन्तु उनका आचरण, व्यवहार और शैली अंग्रेजीयत में रंगी हो मैकॉले ने इस देश की शिक्षा प्रद्धति में आमूलचूल परिवर्तन किया और अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व स्थापित किया। अंग्रेजी शिक्षा के परिणामस्वरूप हमारे में हीनता का भाव आ गया और हम अपने महापुरूषों, ज्ञानवेताओं वैज्ञानिकों को भूल गए हम न्यूटन को तो जानते है परन्तु आर्यभट को नहीं जानते। हम यह नहीं कहना चाहते, कोपरनिक्स से बहुत पहले हमारे देश में सूर्य के केन्द्र की व्यवस्था को हमने जान लिया था। हम अपने विद्यार्थी को यह भी नहीं बताना चाहते कि परमाणु के सम्बन्ध में सबसे पहले संकल्पना हमारे देश में हुई ज्यामैट्री में जिस परिमेय को पाईथागोरस के नाम से पढ़ाया जाता है, वह बौद्वायन ने हमे दी थीं शुश्रुत एक बहुत ही प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक हुए। कणाद ऋषि ने अणु का आविष्कार किया था। इस ऋषि परम्परा को हम भूल गए और अंग्रेजी शिक्षा का हमने अंधा अनुकरण किया। इसलिए जो भी प्राचीन है उसको हम हीन मानते है और जो आधुनिक है उस पर गर्व करते है।
अतीत काल में विदेशी यात्रियों और पर्यटकों ने भारतीयों की नैतिक उत्कृष्टता के लिए भूरि-भूरि प्रशंसा की है। आज के अधिकांश शिक्षित युवकों को इतिहास का ज्ञान नहीं है। उन्हें इन कथनों पर विचार करके इस प्रशंसा का आधार ढूंढना चाहिए। लगभग दो हजार वर्षों पूर्व एरियन ने कहा था, कभी किसी भारतीय के मिथ्यावादी होने की शिकायत सुनने में नहीं आती।" लगभग 1500 वर्षों पूर्व भारत की यात्रा पर आए बौद्ध मतावलम्बी चीनी यात्री हेनसांग ने मगध अंचल की अद्भुत समृद्धि तथा वहां के लोगों की उच्च नैतिकता-बोध की बड़ी प्रशंसा की है। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज की भारत यात्रा के समय यहां के लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे संस्कृत भाषा में ताला' शब्द का अर्थबोध कराने वाला कोई शब्द ही नहीं था। मेगस्थनीज ने लिखा, "ये लोग बताते हैं कि इन्होंने कभी अकाल या भुखमरी नहीं देखी" विश्व के अन्य भागों में युद्ध घोषित होने पर सामान्यतया दुश्मन की भूमि को बरबाद कर दिया जाता है, ताकि उसमें कोई फसल न उगाई जा सके। परन्तु इस देश (भारत) में अन्न के उत्पादकों को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उनको कभी कोई हानि नहीं पहुंचाई जाती पड़ोस में युद्ध छिड़े जाने पर भी किसान अपने खेतों में काम करते रहते हैं। एक सैनिक किसी अन्य सैनिक को मार सकता है, परन्तु वह किसी किसान को स्पर्श तक नहीं करता। शत्रु की वस्तुओं में कभी आग नहीं लगाई जाती, किसी पेड़ को काटा नहीं जाता" । मार्कोपोलो ने कहा था, "भारतीय व्यापारी संसार में सर्वोत्तम और सर्वाधिक सत्यनिष्ठ है। किसी भी कारण से वे कभी झूठ नहीं बोलते ग्यारहवी शताब्दी के मुसलमान यात्री इद्रीसी ने कहा था, " भारतवासी अपनी नैतिक सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए विख्यात है।"
देश की स्वतन्त्रता के 66 वर्ष पश्चात भी पाश्चात्यीकरण का प्रभाव अभी भी बना हुआ है। हाल ही में घटित गुड़गांव की घटना से स्पष्ट होता है कि जहां 125 बालक उस मनोरंजक स्थल पर गए जिसके मालिक ने वहां यौन क्रीड़ाएं तथा हुक्का पीने का प्रबन्ध किया प्रवेश शुल्क 600 रूपये था। यह व्ययसंधि के स्कूली बच्चे मातापिता से बिना स्वीकृति के यहां पहुंचे थे। पुलिस को जब जानकारी मिली तो उन सबको गिरफ्तार कर लिया गया। यह एक उदाहरण ही नई पीढ़ी और दिशा स्पष्ट करने के लिए प्रर्याप्त कुछ दिन पूर्व भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह जी और रा.स्व. सेवक संघ के सरसंघ चालक मा. मोहनभागवत जी ने यह कहा था कि देश की राज्य भाषा हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर जो अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा है उससे छात्रों का हमारे देश की धरती तथा संस्कृति से सम्बन्ध विच्छेद हो रहा है। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय यह प्रचार करते हैं कि अंग्रेजी पढ़कर ही हम देश में उच्च स्थान प्राप्त कर सकते हैं। हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने कहा है कि यदि मैनें मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण नहीं की होती तो मैं कभी बड़ा वैज्ञानिक और राष्ट्रपति नहीं बन पाता। संसार के 150 संस्थानों के शोध से यह बात सिद्ध होती है कि बालक मां के गर्भ में ही मातृभाषा सीख लेता है। अंग्रेज़ी के कारण उसकी योग्तयाएं क्षमाताएं विकसित नहीं हो पाती।
* शिक्षा का व्यापारीकरण
व्यापारीकरण व्यवसायीकरण तथा निजीकरण ने शिक्षा क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले लिया है। मण्डी में शिक्षा क्रय-विक्रय की वस्तु बनती जा रही है। इसे बाजार में निश्चित शुल्क से अधिक धन (Capitation fee) देकर खरीदा जा सकता है। परिणामतः शिक्षा में एक भिन्न प्रकार की जाति प्रथा जन्म ले रही है। धन के आधार पर छात्र आई.आई. टी. एम.बी.ए. सी.ए. एम.बी.बी.एस आदि उपाधियों के लिये प्रवेश पा कर उच्च भावना से ग्रस्त और घनाभाव के कारण प्रवेश से वंचित हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं। दोनों ही श्रेणियों के छात्र भावातिरेक से ग्रस्त है। असमानता की खाई बढ़ रही है। सामाजिक असंतुलन और विषमता इस का ही परिणाम है।
शिक्षा पर धन और बल का अधिकार रहेगा, भेदभाव बढ़ेगा। स्पष्ट है निजीकरण के माध्यम से कभी भी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कोचिंग के बाजार में कई घटिया गैरमान्यता प्राप्त, फर्जी शिक्षा की दुकानें खुलती जा रही हैं। इन सबको रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। देश में 125 डीम्ड विश्वविद्यालय हैं इनके 102 निजी स्वामित्व वाले संस्थान है। इन्होंने उच्च शिक्षा को मुनाफे का धन्धा बना दिया है। आन्ध्रप्रदेश में 500 से अधिक निजी इन्जीनियरिंग महाविद्यालय, कर्नाटक में यह संख्या 170 है, उड़ीसा में 81, राजस्थान में 80 है इस परिदृश्य से जो स्थिति उपस्थित हुई, इस कारण आर्थिक व सामाजिक आधार पर भी शिक्षा विभाजित हुई है।
* मैडिकल विश्वविद्यालयों का बाजार
यह विषय 2001 एस. आर. एम मेडिकल कॉलेज दिल्ली का है। मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल ने इस नकली कॉलेज की पोल खोली थी। यह तो एक उदाहरण है ऐसे अनेक मेडिकल कॉलेज हैं जिन का देश में व्यापार चल रहा है। दक्षिण भारत में डाक्टरों की उपाधि प्राप्त 90 प्रतिशत एम.बी.बी.एस के छात्र दिल्ली में एनटरसशिप (Enteranship) करने आते हैं और यहां इनकी पढ़ाई के स्तर की पोल खुल जाती है। दिल्ली में कई प्रतिष्ठित अस्पतालों में भी ऐसे नकली डाक्टर मिल जायेंगे।
सरकारें मरीजों के साथ खिलवाड़ कर रही है और नकली डाक्टरों की उपाधियों को मान्यता दी जा रही है। मेडिकल कालिजों के बाजार का यह काला धन्धा चल रहा है। किराए के मकान में 20 लाख रुपये लेकर 100 विद्यार्थियों को प्रवेश देंगे और यह हो गया मेडिकल कॉलेज? करोड़ों रुपये व्यय कर डिग्री लेने वाले डाक्टरों का पैसा कमाने से सरोकार है बस सेवा से नहीं।
केतन देसाई मेडिकल कालिजों के बाज़ार के बेताज बादशाह की भ्रष्टाचार में लिप्तता का जब पर्दाफाश हुआ तो लगा केतन के विशाल हमाम में खड़े लोगों का चेहरा देख लें। यह सब भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके हैं।
मेडिकल कांऊसिल आफ इण्डिया को भंग कर कार्य संचालन के लिए समिति का गठन कर दिया गया है परन्तु इससे समस्या का निदान होने वाला नहीं? मानव संसाधन विकास मंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री की चिकित्सा शिक्षा पर एकाधिकार की जंग चिकित्सा सेवा के लिए करालता नरी चुनौती है। व्यवस्था में भ्रष्टाचार दीमक के समान देश की नींव को खोखला कर रहा है। कठोर कानून बनें अपराधियों को दण्डित किया जाये। राजनीतिज्ञों के संरक्षण में चल रहा धन्धा बन्द होना चाहिए और राजनीति के धुरन्धर जो इस बाजार के काले धन्धे में लिप्त हैं उन्हें भी सलाखों के पीछे करने से उदाहरण प्रस्तुत होगें।
अखिल भारतीय कांग्रेस डाक्टर मंच ( Medicial Cell) का कहना है कि संसधान मन्त्रालय मैडिकल शिक्षा का संचालन कैसे कर सकता है?गुलाम नबी आजाद स्वास्थ्य मंत्री ने अपने कथन में स्पष्ट किया है स्वास्थ्य शिक्षा का किसी दूसरे मन्त्रालय को सौंपने का प्रश्न ही नहीं उठता। श्री कपिल सिब्बल उच्च तथा तकनीकी शिक्षा के विभागों के संचालन तथा प्रबन्धन के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था का गठन करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। दोनों मंत्रालयों का मतभेद और मेडिकल शिक्षा पर अपने वर्चस्व स्थापित करने की होड़ से पहले से ही चिकित्सा की निराशाजनक स्थिति बिगड़ती नजर आती है। इस आपसी कलह से सुधार नहीं होगा यह निश्चित है।
उच्चतम न्यायालय की मेडिकल कालिज तथा दन्त चिकित्सा शिक्षण संस्थाओं पर की गई आक्रोश मेरी टिप्पणी शिक्षा के इस पक्ष की यथार्थ-नग्नता को देश के सम्मुख ला रही है। ऐसा प्रतीत होता कि इस व्यवसाय के प्राध्यापक भगवान कृष्ण के समान सर्वव्यापी हैं। राजस्थान में वही प्राध्यापक हैं जो हरियाणा में भी पढ़ाते हैं। न्यायधीश जी.सी. सिन्चयी तथा श्री सी. के प्रसाद इस बात पर बहुत हैरान थे मूलभूत संसाधनों तथा प्रशिक्षित योग्य प्राध्यापकों के बिना मेडिकल कॉलिज कैसे चल रहे हैं? मेडिकल चिकित्सा में भ्रष्टाचार का यह एक ज्वलन्त उदाहरण है।
देश के करीब अस्सी प्रतिशत तक मेडिकल कॉलेज महाराष्ट्र से लेकर केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु आन्ध्रप्रदेश में है और शेष भाग में मात्र 20 प्रतिशत हैं। इस असंतुलन को भी बदलने की आवश्यकता है। सेवा के इस क्षेत्र को सेवा भाव से देखना व सवारना अतिआवश्यक है।
अल्पसंख्यक तुष्टीकरण - विकृत खेल
केन्द्र सरकार भारत में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का एक विघटनकारी खेल खेल रही है। राज्य सरकारों ने इसका अनुसरण किया है। रोजगार में मुसलमानों आरक्षण के प्रतिशत में वृद्धि की जा रही है। आन्ध्र प्रदेश द्वारा शिक्षा और रोजगार में 4 प्रतिशत और बंगाल सरकार ने 10 प्रतिशत के आरक्षण की घोषणा की है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने देश में पांच मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपनी साम्प्रदायिक विचारधारा के प्रसार के लिए मुल्लापुरम (केरल) पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद, बिहार के किशनगंज, महाराष्ट्र के पूना एवं मध्यप्रदेश के भोपाल में अपने परिसर खोलने की योजना को क्रियान्वित करना प्रारम्भ कर दिया है। इन विश्वविद्यालयों के अधिकारियों के नाम अरबी भाषा में है। शुभन्कर (Logo) में इस्लामिक धार्मिक प्रतीकों जैसे कुरान और नव चन्द्रमा को दर्शाया गया है। धर्माधारित आरक्षण न केवल अवैधानिक है अपितु देश को विभाजन की ओर भी धकेलने का खतरनाक कदम है।
अब समय आ गया है कि शिक्षा की इस विभेदकारी नीति का चारों ओर से विरोध होना चाहिए। वोट बैंक की नीति के आधार पर अल्पसंख्यकवाद के तुष्टीकरण का यह घिनौना खेल तुरन्त बन्द होना चाहिए। सच्चर समिति का सुझाव है कि निर्वाचन क्षेत्रों का परीसीमन इस प्रकार किया जाए कि सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्र एक ही निर्वाचन क्षेत्र में आ जाए जिससे मुस्लिम प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। यह द्विराष्ट्र का स्वरूप नहीं है तो क्या है? रंगानाथ मिश्र जी ने तो एक कदम और आगे जाकर धर्म पर आधारित आरक्षण की पैरवी की है। धर्म आधारित आरक्षण व्यवस्था का पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित सभी ने पुरे जोरशोर से विरोध किया था परन्तु वर्तमान संप्रग सरकार मिश्र समिति की आड़ में धर्माधारित आरक्षण देने के लिए प्रयासरत है। देश में विभाजन की रेखाएं खींची जा रही है।
विदेशी संस्थाओं का आकर्षण
अमरीकी इन्वेस्टमेंट कसलेटेन्ट राबेट लिटले भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों को अपना कैम्पस
खोलने की एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में धन्धा कमाने के अवसर ढूंढ़ने के प्रयास केवल लिटले ही नहीं और भी बहुत सी कम्पनियों कर रही है।
अमरीका व यूरोपीय शिक्षा माफियाओं व बैंको की गिद्ध दृष्टि भारत के शिक्षा क्षेत्र पर है।
अमरीका भक्त मनमोहन सिंह, मोटेक आहलुवालिया, सैम पित्रोदा, कपिल सिब्बल यह चौकड़ी शिक्षा को विदेशी जाल तथा चाल में फसाने को आतुर दिखाई देती है।
मैक्समूलर ने लिखा था हम शिक्षा के माध्यम से भारत पर दोबारा जीत प्राप्त करेंगें पाश्चात्य विश्वविद्यालयों की स्थापना मैक्समूलर के कथन की सत्यता को सिद्ध कर रही है।
प्रो. दयानन्द डोनगांवकर जो विश्वविद्यालय संगठन के महामंत्री थे, उन्होंने कहा है कि हम विरोधानास के संसार में रह रहे है.
1. हम संसार में शिक्षा के ढांचे का सबसे बड़ा तंत्र है परन्तु विश्वविद्यालयों में केवल 14 प्रतिशत विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं।
2. हम कहते हैं कि हम ज्ञानवान, बुद्धिगामी देश है परन्तु इस देश में 35 प्रतिशत आबादी अनपढ़ है।
3. हमारा मानना है कि उच्च शिक्षा में 2020 तक विश्वविद्यालय में जाने वाले विद्यार्थी 20 प्रतिशत हो
जाएंगे परन्तु प्रथम से बारहवीं तक तक 62.69 विद्यार्थी विद्यालय त्याग देते है।
4. कहा जा रहा है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था उच्च स्तर तक पहुंच गई है परन्तु इस देश के 70 प्रतिशत लोग अभी भी गरीबी की रेखा से नीचे है।
5. 73 प्रतिशत लोग ग्रामों में बसते है परन्तु उच्च शिक्षा के लिए 90 प्रतिशत संस्थान नगरों में है।
6. हमारी परम्परा कहती है. आचार्य देवो भवः परन्तु यथार्थ स्थिति हमारे सम्मुख है।
शिक्षा का अधिकार
श्री कपिल सिब्बल ने शिक्षा के अधिकार के कानून को शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम बताया है। कानून बनने के 3 वर्ष के पश्चात जो राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण किया गया "नेशनल सैम्पल सर्वेक्षण के आधार पर
• 30 प्रतिशत विद्यालयों के ठीक भवन नहीं हैं
• स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था नहीं है। लड़कियों के लिये पृथक से शौचालय नहीं है।
• 20 प्रतिशत विद्यालयों में केवल एक ही कमरा है अर्थात उनमें एक ही अध्यापक है।
10 प्रतिशत विद्यालयों में श्याम पट भी नहीं हैं.
• विद्यालयों में मीड डे मील (दोपहर का भोजन) जो दिया जा रहा है वह घटिया तथा विषैला है। उसमें कोई पोष्टिक तत्व नहीं हैं इसके सेवन से बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। बिहार में 21 बच्चों की मौत हो गई है। इस योजना के क्रियान्वयन के कारण विद्यालयों से बच्चों के बीमार होने के समाचार प्रतिदिन आ रहे है। सारे देश में एक भय का वातावरण है। मीड डे मिल की असफलता हमारे सम्मुख है।
• हम कहते है "सा विद्या या विमुक्तेय, अब तो कहा जाता है सा विद्या या नियुक्तये" शैक्षिक स्तर के सम्बन्ध में कहा गया है कि कक्षा 5 का विद्यार्थी कक्षा 3 की पुस्तक नहीं पढ़ सकता है और वह कक्षा-2 का विद्यार्थी गणित के प्रश्न हल करने में सक्षम नहीं है।
शिक्षक व शिक्षा की दुर्दशा
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् ने जिस बेरहमी तथा बेशर्मी से बी.एड़ महाविद्यालयों को खोलने की स्वीकृति प्रदान की है, वह दुःखद गाथा है। प्रायः सभी महाविद्यालय मापदण्डों की अवहेलना करते है। राजस्थान जैसे राज्य में वर्तमान में 857 बी.एड महाविद्यालय हैं और उनमें 92 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे है। यही स्थिति अन्य राज्यों की भी है। अधिकतर महाविद्यालयों में अनुभवहीन प्राचार्य नियुक्त हैं। योग्य प्राध्यापक नहीं, भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का अभाव है। प्रायोगिक कार्य, सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण अभ्यास, यह सब मजाक हैं महाविद्यालय धन कमाने की दुकानें बन गए हैं। महाविद्यालयों में वर्ष में 30 दिन उपस्थित रहकर परीक्षा उत्तीर्ण कर उपाधि प्राप्त कर लेना यह सब दिखाई दे रहा है। शुल्क जमा होना चाहिए "बस" इसी एक नियम को कठोरता से लागू किया जा रहा है। अभी आचार्यों के शैक्षिक स्तर के सम्बन्ध में शौचनीय स्थिति है। बिहार में 5 लाख अध्यापक पात्रता परीक्षा में पंजीकृत हुए उनमें से केवल 1 लाख अध्यापक ही उतीर्ण हो सके। यही स्थिति अन्य प्रदेशों की भी है। देश में शिक्षकों के 6 लाख पद रिक्त है। ठेके पर रखे अस्थायी अध्यापक पढ़ा रहे है। आज के अध्यापक बौद्धिक दृष्टि से निर्धन तथा हृदय से कठारे नजर आते दिख रहे है।
● विजय के पड़ाव
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद् द्वारा कक्षा 6 से 12 वीं इतिहास की पुस्तकें तथा हिन्दी की पुस्तकें संविधान की धाराओं तथा शिक्षा के उद्देश्यों के विरूद्ध लिखी गई है। इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय में शिवजी भोग विलासी तथा दुर्गा शराब पीने वाली के रूप में दिखाना देवी देवताओं को अपमानित करना घृणित प्रयास है। दिल्ली विश्वविद्यालय मुक्त अध्ययन विश्वविद्यालय में सरदार पटेल को आरएसएस का सहयोगी बताकर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला बताया गया है। आईसीएससी. एनसीईआरटी की पुस्तकों में स्वतंत्रता सेनानियों को आतंकवादी कहा गया दिल्ली विश्वविद्यालय की इतिहास की पुस्तक में हनुमान को छुट भैया तथा कामुक बताया गया।
2007 और 2008 में केन्द्र सरकार के यौन शिक्षा लागू करने का प्रयास हुआ। अमेरीकी लेखिका वेण्डी डोनिगर ने "द हिन्दूज एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री" पुस्तक लिखकर गांधी जी, स्वामी विवेकानन्द, रानी लक्ष्मीबाई के सम्बन्ध में अपशब्द लिखकर अपमानित किया। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अंग्रेजी को अनिवार्य बनाकर हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने वाले तथा ग्रामीण वासी विद्यार्थियों को इस सेवा में आने से वंचित करने का षड्यंत्र रचा गया।
इन सब विकृतियों विसंगतियों राष्ट्रीय अपमान करने वाले संदर्भों के विरुद्ध शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति ने देशव्यापी परिणामकारक आन्दोलन चलाया। जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय तक इन षड्यंत्रों को बेनकाब करने में हमने सार्थक प्रयास किया है। अभी तक 9 न्यायालयों के निर्णय हमारे पक्ष में आए है केस अभी लंबित हैं लडाईया जीती है, युद्ध जीतना अभी शेष है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की ओर से छः विषयों पर कार्य किया जा रहा है -
1. वैदिक गणित
2. पर्यावरण की शिक्षा
3. चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की शिक्षा
4. शिक्षा में स्वायत्तता
5. मातृभाषा में शिक्षा
6. मूल्यों की शिक्षा पर कार्य शुरू किया है।
शिक्षा पर मुनाफा कमाने पर रोक, धनवान तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े सभी छात्रों के लिए अच्छी शिक्षा दिलाने का संकल्प शिक्षा इन सबको स्वीकार करे राजनीति की चेरी बने रहने से इसे छुटकारा मिले देशभक्ति, स्वास्थ्य संरक्षण, सामाजिक संवदेनशीलता तथा आध्यात्मिकता यह शिक्षा के भव्य भवन के चार स्तम्भ हैं। इनको राष्ट्रीय शिक्षा की नीति में सम्मिलित कर स्वायत्त शिक्षा को संवैधानिक स्वरुप प्रदान करना चाहिए। इन सब उपायों से शिक्षा की चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता है। शिक्षा बाजार नहीं अपितु मानव मन को तैयार करने का उदात्त सांचा है जितनी जल्दी हम इस तथ्य को समझेंगे उतना ही शिक्षा का भला होगा।