विषय
चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास :
यह विषय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का आधारभूत विषय हैं, क्योंकि मूल्यपरक शिक्षा के अभाव में मनुष्य के चरित्र का निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास एवं कठिन कार्य है। सही अर्थों में शिखा में भारतीयता तभी आ सकती है, जब उसमें मूल्यबोध का समावेश हो। इसी को ध्यान में रखकर 'चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास" विषय को न्यास ने आगे बढ़ाया है। स्वामी विवेकानंद सहित प्रायं अधिकांश चिंतकों ने शिक्षा का लक्ष्य "मनुष्य का चरित्र का निर्माण' बताया है। इस दृष्टि से “पंचकोश की संकल्पना" को " केन्द्र में रखकर न्यास निरंतर इस विषय की कार्यशालाओं का आयोजन करते रहा है। इस विषय पर न्यास के द्वारा विद्यालय स्तर का पाठ्यक्रम एवं अन्य पुस्तकें तैयार करके देश के 300 से अधिक विद्यालयों में प्रयोग प्रारंभ किए जा चुके हैं। इसी प्रकार उच्च शिक्षा हेतु प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम (सर्टिफिकेट कोर्स) एवं क्रेडिट पाठ्यक्रम तैयार करने तीन विश्वविद्यालयों में अनुबंध (MOU) करके लागू किया जा रहा है। जिन संस्थानों में इसें गम्भीरता से लागू किया गया है, वहां आश्चर्यजनक एवं आनंददायक परिणाम प्राप्त हुए है।
वैदिक गणित भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है। ज्ञान के आदि स्रोत वेद हैं। शून्य एवं शून्य आधारित स्थानीय मान पद्धति भारत की विश्व को अनुपम देन है। इस पद्धति का प्रचुर मात्रा में उल्लेख वेदों में है। गणनाओं को खेल-खेल में मौखिक रूप से हल करना हमारी परंपरा रही है। इस परंपरा का निर्वाह कुछ शैक्षणिक संस्थानों एवं विद्धानों द्वारा शार्ट कट्स, स्पीडी मेथड्स, मैथड्स आदि नामों से किया जारहा है। इन विधियों का उपयोग करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न भी पूछे जाते है। सभी के पीछे की पृष्ठभूमि वैदिक गणित से प्रभावित है। इसी ज्ञान परंपरा को शिक्षा क्षेत्र में व्यावहारिक धरातल पर उतारने के उद्देश्य वैदिक गणित विषय को न्यास ने एक विषय के रूप में आगे बढ़ाया है। वैदिक गणित पर कक्षा 1 से 12 तक का पाठ्यक्रम एवं डिप्लोम पाठ्यक्रम एवं डिप्लोम पाठ्यक्रम तैयार करके देश के दर्जनों विश्वविद्यालयों के साथ अनुबंध किया जा चुका है। अभी हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ भी इस दिशा में कदम बढ़ाया जा चुका है। अब तक देश के 10 राज्यों में वैदिक गणित की न्यूनाधिक मात्रा में विद्यालयी पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा चुका है। इस विषय पर अब तक कई राष्ट्रीय एवं अंत र्राष्ट्रीय सम्मेलन / सेमिनार इत्यादि सम्पन्न हो चुक है।
पर्यावरण शिक्षा वैश्विक धरातल पर पर्यावरण की शिक्षा आज एक प्रासंगिक विषय बनकर उभरा है। - इसका कारण यह है कि विश्व के समक्ष आज पर्यावरण संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में पर्यावरण शिक्षा की भारतीय दृष्टि की प्रासंगिकता आज सर्वाधिक समीचीन बन गई है। मनुष्य प्रकृति का एक अंग है, इस लिए प्रकृति का संरक्षण एवं बौद्धिक प्राणी होने के नाते उसका अहम दायितव है। बढ़ते हुए औद्योगिकरण, उपभोक्ता संस्कृति के प्रसार और घोर भौतिकतावाद के कारण पर्यावरण के प्रति लोगों में एक अपेक्षा भाव गया है, जिस दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा में पर्यावरण की भारतीय दृष्टि का समावेश हो। पर्यावरण की भारतीय दृष्टि समस्या उत्पन्न ही न हो, ऐसा विचार प्रदान करती है। इसी को ध्यान में रखकर न्यास ने एक विषय के रूप में पर्यावरण शिक्षा को रखा है। न्यास ने कक्षा 1 से 12 तक का पाठ्यक्रम तैयार किया है और एक पत्रक प्रकाशित करके शैक्षणिक संस्थानों में पर्यावरण जागरूकता हेतु अभियान भी चलाया है, जिसके सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं। इस विषय पर अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन किए जा चुके हैं।
शिक्षा में भारतीयता तभी आ सकती है, जब शिक्षा में स्वायत्तता का समर्थन नहीं करती है। परंतु, शिक्षा में स्वायत्तता का तात्पर्य केवल वित्तीय स्वायत्तता से नहीं है। यह स्वायत्तता प्रत्येक स्तर पर होनी चाहिए - छात्रों को अपनी रूचि का पाठ्यक्रम चुनने का अवसर मिले, शोधार्थियों को अपनी रूचि एवं क्षमता के अनुरूप शोध विषय चुनने ही स्वायत्तता मिले, ये सारी बातें भी सम्मिलित होनी चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों को केवल सरकार से स्वायत्तता मिल जाए, इसका प्रयास न करके यह भी प्रयास करना चाहिए कि उनके, संस्थानों में शिक्षकों इत्यादि की कितनी स्वायत्तता प्राप्त है। इस प्रकार शिक्षा में चतुर्दिक स्वायत्तता प्राप्त हो, इस उद्देश्य के साथ यह विषय कार्य करता है। शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन हेतु शिखा का स्वायत्तत होना अनिवार्य है। इस हेतु विद्यालय / महाविद्यालय / विश्वविद्यालयों एवं राज्य तथा केन्द्र सरकार के स्तर पर शिक्षा में स्वायत्तता की दृष्टि का विकास करने हेतु संगोष्ठियों परिचर्चाओं का आयोजन करके इस विषय में जागरूकता एवं सहमति बनाकर देश की शिक्षा स्वायत्त बने इस हेतु कार्य प्रारंभ किया गया है।
यह सर्वमान्य तथ्य है कि मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही हो सकता है। इसलिए न्यास के माध्यम से देशभर में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा कराने के लिए प्रयास चल रहे हैं। नयी शिक्षा नीति-2020 में भी इस बिन्दू को प्रमुखता से रखा गया है। न्यास के आग्रह पर लाखों लोगों ने अपने घर में अपनी मातृभाषा में ही बच्चों से बात करना और कम से कम हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में करने प्रारंभ किये हैं । भारतीय भाषाओं पर संगोष्ठियों, कार्यशालाओं एवं परिसंवादों का आयोजन किया जा रहा है। न्यास के माध्यम से प्रकाशित पुस्तक 'मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा' को विभिन्न भाषाओं में लाखों की संख्या में प्रकाशित कर वितरित किया जा रहा है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा भाषा कानून के विरुद्ध जो कार्य किये जा रहे हैं उसमें सुधार हेतु तीन हजार से अधि क पत्र सरकारों को लिखे गये हैं। इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।
तकनीकी शिक्षा जिसका राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। तकनीकी शिक्षा का - स्वरूप इस तरह हो जिसमें एक श्रेष्ठ अभियंता के साथ-साथ एक श्रेष्ठ इंसान बन सके। तकनीकी शिक्षा पर कार्य 2016 में प्रारम्भ हुआ। शुरूआत में एनआईटी प्रयागराज, जालन्धर, सूरत, त्रिची एवं त्रिपुरा में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। तकनीकी शिक्षा (NITS) के पाठ्यक्रम एवं पूर्ण व्यवस्था में किस प्रकार एवं क्या-क्या सुधार किये जा सकते है तथा इसकी गुणवता को किस प्रकार बढ़े। न्यास के द्वारा देश के प्रतिष्ठित संस्थानों भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), विश्वविद्यालयों के साथ विभिन्न विषयों को लेकर राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ आयोजित की गई। विगत कई वर्षों से शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास प्रयास कर रहा है कि शिक्षा हमारी संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप बने । विश्व के विकसित देशों में शिक्षा मातृभाषा में दी जा रही है। हमारे यहाँ तकनीकी शिक्षा अंग्रेजी भाषा में दी जा रही थी। न्यास का स्पष्ट मानना है कि मां, मातृभूमि, मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। हाल ही में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षाप परिषद्, नई दिल्ली के द्वारा निर्णय लिया गया है कि अब अभियांत्रिकी की पढ़ाई अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य सात राज्यों की भाषा में भी होगी: -
- ऑनलाइन शिक्षण और सीखने के लिए शिक्षाशास्त्र
- वर्चुअल लैब
- ऑनलाइन मूल्यांकन और आकलन
- मूल्य शिक्षा और तकनीकी छात्रों का समग्र विकास
- कौशल विकास और उद्योग संस्थान इंटरैक्शन अकादमिक सामाजिक जिम्मेदारी
- आत्मनिर्भर भारत
- पर्यावरण और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकी
- शिक्षक प्रशिक्षण
- भारतीय ज्ञान परंपरा का तकनीकी शिक्षा में समावेश
- अनुसंधान एवं विकास और नवाचार
- बहु-विषयक, बहु-प्रवेश एवं बहु निकासी, बहु संसीन तकनीकी शिक्षा
प्रबंधन शिक्षा में भारतीय दृष्टि
प्रबंधन शिक्षा, शिक्षा का एक महत्वपूर्ण आयाम इसमें भारतीयता का समावेश हो, इसका स्वरूप भारतीय दृष्टि से निर्धारित हो- इस दिशा में प्रबंधन शिक्षा निरंतर कार्यरत है। प्रबंधन शिक्षा का स्वरूप देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बने इस हेतु देश के प्रबंधन के विद्वानों की कार्यशालाओं का आयोजन कर एक क्रेडिट कोर्स तैयार किया जा रहा है। इस पाठ्यक्रम को वर्तमान पाठ्यक्रम के साथ क्रेडिट कोर्स के रूप में लागू किया जा सकता है, जिसके माध्यम से वर्तमान प्रबंधन के पाठ्यक्रम की कमी को दूर किया जा सके।
देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रणाली भारतीय आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप सक्षम, पारदर्शी एवं न्यायसंगत बने एवं इन परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर भारतीय भाषाओं के विकल्प की व्यवस्था हो, इस हेतु न्यास का यह प्रकल्प प्रतिबद्ध है। विभिन्न प्रकार की विविधताओं एवं भिन्नताओं को एक समरस धागे में बांधे भारत देश में सुशासन प्रदान करना एक जटिल चुनौती है। इस चुनौती से पार पाने हेतु आवश्यक प्रशासन तंत्र के सूत्रधारों का चयन भी चुनौतीपूर्ण कार्य है। स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी देश की प्रशासन व्यवस्था अंग्रेजों द्वारा रचित ICS पद्धति पर ही आधारित है। चयन परीक्षा भी ब्रिटिश काल के अनुरूप ही चली आ रही थी। न्यास का मानना है कि इस प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इसी दिशा में न्यास के प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत सरकार ने बी. एस. वासवान समिति का गठन किया था। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए राज्यों में भी परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु न्यास का यह प्रकल्प कार्यरत है। प्रकल्प के ध्येय वाक्य 'संवाद- सुझाव - सुधार' को क्रिया में लाते हुए छात्रों से संवाद कर, विद्वानों से चर्चा कर सुझाव एकत्रित कर उनको उचित पटल तक ले जाने का कार्य कर इन परीक्षाओं में अनुपलब्ध शिकायत निवारण व्यवस्था की दिशा में कार्यरत है।
शोध व नवोन्मेष किसी भी राष्ट्र की महत्वपूर्ण बौद्धिक संपदा होती है। इसके माध्यम से नवीन ज्ञान का सृजन होता है। शिक्षा क्षेत्र में तो इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। देश में शोध कार्य की गुणवत्तता के संवर्धन हेतु शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने एक विषय के रूप में शोध-प्रकल्प के कार्य को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस विषय के अंतर्गत हम शोध में नैतिकता, पारदर्शिता व भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुकूल शोध दृष्टि के निर्माण कार्यरत हैं। शोध कार्य मात्र उपाधि हेतु न होकर देश, समाज विश्व और प्रकृति के हित में हो, ऐसा हमारा प्रयास है। उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर गुणवत्तापूर्ण शोध हो, हम इस दिशा में संगोष्ठियों व परिचर्चाओं के माध्यम से प्रयासरत है । गत वर्ष कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान अखिल भारतीय शोध आलेख प्रतियोगिता- 2020 का आयोजन किया गया जिसमें देशभर से लगभग 2500 शोध-अध्येताओं ने प्रतिभागिता की थी।
शिक्षक शिक्षा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु अच्छे शिक्षकों का होना आवश्यक है। शिक्षक, शिक्षा के : माध्यम से शिक्षकों के सम्यक प्रशिक्षण का काम किया जाता है। ऐसे में यदि शिक्षक शिक्षा का पाठ्यक्रम दोषपूर्ण होगा तो उससे अच्छे शिक्षक कभी भी तैयार नहीं हो सकते। इस हेतु न्यास ने इस आधाभूत विषय पर काम करना आरंभ किया है। शिक्षक शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यावहारिकता, भारतीय एवं छात्रों के व्यक्तित्व के समग्र विकास का समावेश करके न्यास के माध्यम से देशभर में शिक्षक- शिक्षा के विद्वान आचार्यों की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। इन कार्यशालाओं से प्राप्त सुझावों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार करने का कार्य किया जा रहा है।
भारतीय इतिहास लेखन का जो कार्य हुआ है, वह अनेक विसंगतियों से युक्त है। अभी तक जो इतिहासकारों ने इतिहास- ग्रंथ लिखे हैं, उनमें साम्राज्यवादी इतिहास दृष्टि व मार्क्सवादी इतिहास दृष्टि ही प्रमुख रूप से अकादमिक जगत में छाई रही है। दोनों ही दृष्टियों भ्रामक हैं एवं भारतीय इतिहास की विकृत व्याख्या प्रस्तुत करती है। ऐस में, भारत की इतिहास शिक्षा भारती दृष्टि से हो इस हेतु हम इस प्रकल्प के अंतर्गत कार्यरत हैं। इतिहास के पाठ्यक्रमों का पुनर्गठन कर उसका सम्यक भारतीय स्वरूप करना हमारा लक्ष्य है। इस प्रकल्प कं अंतर्गत मुख्यतः हम निम्नांकित बिन्दुओं पर कार्य करते है: -
- भारतीय इतिहास लेखन पर विमर्श।
- क्षेत्रीय इतिहास की महत्ता पर विमर्श।
- विद्यालय शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के इतिहास पाठ्यक्रम पर चर्चा।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में इतिहास पाठ्यक्रम विश्व इतिहास का भारतीय संदर्भ में अध्ययन।
- राष्ट्रीय विचारधारा के अंतर्गत शोध के विषयों का चयन।