शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास

(विषय, आयाम एवं कार्य विभाग)

भारतीय शिक्षा को नया विकल्प देने हेतु 24 मई 2007 को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन किया गया। भारत की शिक्षा देश की संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप हो - इस उद्देश्य के साथ हमारा कार्य विस्तार क्रमिक रूप से होता गया। सर्वप्रथम हमने ‘चरित्रा निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास’ के साथ-साथ  मूल्य आधरित शिक्षा, मातृभाषा ;भारतीय भाषाद्ध में शिक्षा, वैदिक गणित, पर्यावरण शिक्षा और शिक्षा में स्वायत्तता इन आधरभूत विषयों पर कार्य प्रारंभ किया। शिक्षा के इस कार्य में भाषा के कार्य के महत्व को ध्यान में लेकर भारतीय भाषा मंच एवं भारतीय भाषा अभियान नाम से दो मंचो का भी गठन किया गया है।

विषय :-

1. चरित्रा निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास, मूल्यपरक शिक्षा। 

2. वैदिक गणित

3. पर्यावरण शिक्षा    

4. शिक्षा में स्वायत्तता

5. प्रबंधन शिक्षा      

6. इतिहास शिक्षा की भारतीय दृष्टि

7. तकनीकी शिक्षा    

8. शिक्षक शिक्षा

9. प्रकल्पः प्रतियोगी परीक्षा      

10. शोध प्रकल्प

आयाम :-

1. भारतीय भाषा अभियान 

2. भारतीय भाषा मंच  

3. शिक्षा स्वास्थ्य न्यास

कार्य-विभाग :-

1. प्रकाशन कार्य   

2. प्रचार-प्रसार कार्य  

3. महिला कार्य

 

विषयः-

चरित्रा निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास :- यह शिक्षा का आधरभूत विषय है, क्यांकि मूल्यपरक शिक्षा के अभाव में मनुष्य के चरित्रा का निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास संभव नहीं है। सही अर्थां में शिक्षा में भारतीयता तभी आ सकती है, जब उसमें मूल्यबोध का समावेश हो। इसी को ध्यान में रखकर ‘‘चरित्रा निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास’’ विषय को न्यास ने आगे बढ़ाया है तथा निरंतर इस विषय की कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है। जिन संस्थाओें में इसें गम्भीरता से लागू किया गया है, वहां आश्चर्यजनक एवं आनंददायक परिणाम प्राप्त हुए हैं।

वैदिक गणित :- वैदिक गणित भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है। ज्ञान के आदि स्रोत वेद हैं। शून्य एवं शून्य आधारित स्थानीय मान पद्धति भारत की विश्व को अनुपम देन है। गणनाओं को खेल-खेल में मौखिक रूप से हल करना हमारी परंपरा रही है। इसी ज्ञान परंपरा को शिक्षा क्षेत्र में व्यावहारिक धरातल पर उतारने के उद्देश्य से वैदिक गणित को न्यास ने एक विषय के रूप में आगे बढ़ाया है। वैदिक गणित पर कक्षा 1 से 12 तक का पाठ्यक्रम एवं प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रम तैयार करके देश के दर्जनों विश्वविद्यालयों के साथ अनुबंध किया जा चुका है। इस विषय पर अब तक सैकड़ों की संख्या में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन / कार्यशालाएं इत्यादि सम्पन्न हो चुक है।

पर्यावरण शिक्षा :- पर्यावरण की शिक्षा आज एक प्रासंगिक विषय बनकर उभरा है। क्यूंकि विश्व के समक्ष आज पर्यावरण संकट सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। ऐसे में पर्यावरण शिक्षा की भारतीय दृष्टि की प्रासंगिकता आज सर्वाधिक समीचीन बन गई है। मनुष्य प्रकृति का एक अंग है, इसलिए प्रकृति का संरक्षण उनका अहम दायित्व है। बढ़ते हुए औद्योगिकरण, उपभोक्ता-संस्कृति के प्रसार और घोर भौतिकता के कारण प्रकृति का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है। इसमें मूल से बदलाव हेतु आवश्यक है कि शिक्षा में पर्यावरण की भारतीय दृष्टि का समावेश हो।

शिक्षा में स्वायत्तता :- शिक्षा में वास्तविक परिवर्तन तभी संभव होगा जब शिक्षा स्वायत्त हो। परंतु, शिक्षा में स्वायत्तता का तात्पर्य केवल वित्तीय स्वायत्तता से नहीं है। यह स्वायत्तता प्रत्येक स्तर पर होनी चाहिए। छात्रों को अपनी रूचि का पाठ्यक्रम एवं शोधार्थियों को अपनी रूचि एवं क्षमता के अनुरूप शोध विषय चुनने की स्वायत्तता मिले। शैक्षणिक संस्थानों को केवल सरकार से स्वायत्तता मिल जाए, इतना पर्याप्त नहीं है परंतु उनके संस्थानों में प्राचार्य, शिक्षकों आदि को कितनी स्वायत्तता प्राप्त है, इस प्रकार समग्रता से विचार करना होगा। शिक्षा में चतुर्दिक स्वायत्तता प्राप्त हो, इस उद्देश्य के साथ इस विषय पर कार्य प्रारंभ किया है।

प्रबंधन शिक्षा में भारतीय दृष्टि :- प्रबंधन शिक्षा, शिक्षा का एक महत्वपूर्ण आयाम है। इसका स्वरूप भारतीय दृष्टि से निर्धारित हो, प्रबंधन शिक्षा का स्वरूप देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बने इस हेतु देश के प्रबंधन के विद्वानों की कार्यशालाओं का आयोजन कर एक क्रेडिट पाठ्यक्रम एवं कम अवधि के पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे है, जिसके माध्यम से वर्तमान प्रबंधन के पाठ्यक्रम की कमी को दूर किया जा सके।

शिक्षक शिक्षा :- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु अच्छे शिक्षकों का होना आवश्यक है। शिक्षक - शिक्षा पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों के सम्यक शिक्षण का कार्य अपेक्षित है। ऐसे में, यदि शिक्षक शिक्षा का पाठ्यक्रम दोषपूर्ण होगा तो उससे अच्छे शिक्षक कभी भी तैयार नहीं हो सकते। इस हेतु न्यास ने इस आधरभूत  विषय पर काम करना आरंभ किया है। शिक्षक शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यावहारिकता, भारतीयता एवं छात्रों के व्यक्तित्व के समग्र विकास का समावेश करके देशभर में शिक्षक-शिक्षा के विद्वान आचार्यों की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। इन कार्यशालाओं से प्राप्त सुझावों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार करने का कार्य किया जा रहा है।

तकनीकी शिक्षा :- तकनीकी शिक्षा का राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। तकनीकी शिक्षा का स्वरूप ऐसा हो जिससे छात्र एक श्रेष्ठ अभियंता के साथ-साथ वह श्रेष्ठ मनुष्य भी बन सके। तकनीकी शिक्षा पर 2016 में कार्य प्रारम्भ हुआ। शुरूआत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, एनआईटी में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम तथा व्यवस्थाओं में किस प्रकार एवं क्या-क्या सुधार किये जा सकते है तथा इसकी गुणवता विकास कैसे हो इस हेतु न्यास के द्वारा देश के प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों के साथ मिलकर विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियाँ आयोजित की गई। न्यास का स्पष्ट मानना है कि सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे स्वीकार किया गया है।

प्रकल्प : प्रतियोगी परीक्षा :- देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रणाली भारतीय आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप तथा सक्षम, पारदर्शी एवं न्यायसंगत बने। इन परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर भारतीय भाषाओं के विकल्प की व्यवस्था हो। विभिन्न प्रकार की विविधताओं को एक समरस धागे में बांध भारत देश में सुशासन प्रदान करना एवं इस आवश्यक प्रशासन तंत्र के सूत्रधारों का चयन भी हो इस हेतु न्यास का यह प्रकल्प प्रतिबद्ध है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए राज्यों में भी परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु न्यास कार्यरत है और इसके कई अच्छे परिणाम भी आए है। प्रकल्प का ध्येय वाक्य ‘संवाद-सुझाव-सुधार’ है।

इतिहास शिक्षा :-  स्वतंत्र भारत में इतिहास की पाठ्य-पुस्तकें औपनिवेशिक एवं भारत विरोधी मानसिकता से प्रभावित होने के कारण विसंगतियों एवं विकृतियों से भरा पड़ा है। साथ ही इतिहास के पाठ्यक्रम में समग्रता की दृष्टि का सम्पूर्ण अभाव दिखाई दे रहा है। इतिहास का पाठ्यक्रम संतुलित, सकारात्मक, समग्रता एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सम्यक स्वरूप बने इस हेतु न्यास ने इस विषय पर कार्य प्रारंभ किया है।

शोध प्रकल्प :- शोध व नवोन्मेष किसी भी राष्ट्र की महत्वपूर्ण बौधिक संपदा होती है। इसके माध्यम से नवीन ज्ञान का सृजन होता है। शिक्षा क्षेत्र में तो इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। देश में शोध-कार्य की गुणवता के संवर्धन हेतु न्यास ने शोध-प्रकल्प के कार्य को प्रारंभ किया है। इस विषय के अंतर्गत हम शोध में नैतिकता, पारदर्शिता व देश की आवश्यकता का अनुकूल शोध दृष्टि के निर्माण एवं मातृभाषा में शोध हेतु कार्यरत हैं। शोध - कार्य मात्रा उपाधि हेतु न होकर देश, समाज विश्व और प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हो ऐसा हमारा प्रयास है।

आयाम

भारतीय भाषा मंच :- भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन तथा भारतीय भाषाओं के समर्थकों को लंबे समय से भारतीय भाषाओं के प्रचार एवं संरक्षण हेतु कार्य करने वाले ऐसे सभी व्यक्तियों एवं संगठनों को एक मंच पर लाने के लिए 20 दिसम्बर 2015 को दिल्ली में ‘‘भारतीय भाषा मंच’’ का गठन किया। मंच के माध्यम से देशभर में विचार-विमर्श और सम्मेलनों की एक श्रृंखला आयोजित की जा रही है। परिणामतः देश में भाषा पुनः एक बार विमर्श का विषय बनी है और भारतीय भाषाओं में कार्य को भी गति प्राप्त हुई है। परिवार में संवाद की भाषा से लेकर शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाओं का माध्यम एवं शोध की भाषा भारतीय भाषाएं बनें इस आग्रह के साथ भारतीय भाषा मंच निरंतर कार्यरत है। इसी प्रकार तकनीकी शिक्षा, प्रबंधन शिक्षा, व्यापार-वाणिज्य, बैंकिग एवं सभी प्रकार के सरकारी कार्यालयों की भाषा भारतीय भाषाएँ बने - इस दिशा में मंच प्रयारत है।

भारतीय भाषा अभियान :- न्यायपालिका और विधि शिक्षा के क्षेत्र में भी भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास प्रारंभ किए हैं। इस अभियान का ध्येय वाक्य है - ‘‘जनता को जनता की भाषा में न्याय मिले’’ इस अभियान के माध्यम से बड़े पैमाने पर संगोष्ठियों के आयोजन द्वारा व्यापक जनजागरण अभियान प्रारंभ किए गए हैं, जिसके कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। अभियान के प्रयासों से कई न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्य एवं निर्णय आने शुरू हो गए हैं।

शिक्षा स्वास्थ्य न्यास :- शिक्षा स्वास्थ्य न्यास एक प्रकार का सेवा प्रकल्प है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ है। आज बढ़ते हुए निजीकरण के कारण साधरण व्यक्ति न तो शिक्षा संबंधी अपनी आवश्यकताओं की पूर्त्ति कर पा रहा है और न हीं वह स्वास्थ्य की रक्षा कर पा रहा है। ऐसे में जिन व्यक्तियों की या वर्गो की पहुंच में शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाएँ नहीं है, उन तक आर्थिक और अन्य प्रकार की सहायता पहुंचा कर बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से शिक्षा स्वास्थ्य न्यास का गठन किया गया है।

कार्य विभाग 

प्रकाशन कार्य :- शिक्षा क्षेत्र में किए जा रहे सकारात्मक कार्य, सुधार एवं परिवर्तन हेतु देशव्यापी प्रयास, सरकारी एवं संस्थागत स्तर पर हो रहे बदलाव की जानकारी देश की जनता विशेषकर शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से न्यास के द्वारा ‘‘शिक्षा उत्थान’’ द्विमासिक पत्रिका, ‘‘ शिक्षा दर्पण’’ मासिक ई-पत्रिका तथा विभिन्न प्रकार की पुस्तकें, पत्रक आदि साहित्य निरंतर प्रकाशित किया जा रहा है। न्यास की पत्रिकाओं द्वारा शिक्षण संस्थानों में हो रहे प्रयोग, नवाचार तथा पर्यावरण संरक्षण एवं मातृभाषा में शिक्षा हेतु किए जा रहे कार्यों की जानकारी शिक्षा जगत के लिए उपलब्ध कराई जाती है।

प्रचार-प्रसार कार्य :- प्रचार, मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तभ माना जाता है। देश में शिक्षा परिवर्तन के कार्य में प्रचार माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस बात को संज्ञान में लेकर न्यास ने प्रचार-प्रसार को एक महत्वपूर्ण कार्य विभाग माना है। प्रचार-प्रसार विभाग द्वारा शिक्षा सम्बंधित सकारात्मक कार्यो को विभिन्न समाचार माध्यमों में प्राथमिकता मिले। इस हेतु माध्यमों को नियमित सातत्यपूर्ण ढंग से जानकारी उपलब्ध कराना साथ ही शिक्षा पर लेख लिखने वाले युवकों को तैयार करना। शिक्षा जगत के महत्वपूर्ण परंतु अनछुए रहे मुद्दों को समाचार माध्यमों मे प्राथमिकता मिले आदि कार्यों हेतु प्रचार-प्रसार विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है।

महिला कार्य :- शिक्षा क्षेत्र में वर्तमान में महिलाओं की साक्षरता, सक्रियता, निर्णय प्रक्रिया में भूमिका बढ़े, इस पर न्यास द्वारा विचार, विमर्श, परीक्षण, सर्वेक्षण, कार्यक्रम आदि के माध्यम से सहभाग बढ़ाना। न्यास के आयामों के साथ ही शिक्षा में महिला सम्बन्धी विचार की दिशा भारतीयता आधारित बने, शिक्षा में परिवर्तन के कार्य में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़े, उनका आपस में संवाद हो। इस भूमिका के साथ निम्न विषयों पर काम शुरू किया हैः- विभिन्न स्तर के पाठ्यक्रमों में महिला विषयक पाठ्य सामग्री का परीक्षण तथा आवश्यकतानुसार बदलाव हेतु प्रयास। विभिन्न क्षेत्रों में महिला नेतृत्व सम्पर्क एवं संवाद स्थापित करना। पत्रकार एवं लेखिकाओं से सम्पर्क। प्रांतों में महान नारियों के योगदान पर अध्ययन करना एवं कार्यक्रम आयोजित करना। प्रांतों में शिक्षा में महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने हेतु प्रयास करना।