राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 90 वर्ष शिक्षा क्षेत्र में योगदान

स्वतंत्रता के बाद सोची समझी साजिश के तहत एक भ्रम फैलाया गया कि अंग्रेजों के आने के बाद ही वास्तविक द...

       कई बार लोग प्रश्न करते है कि संघ ने 90 वर्ष में देश में क्या किया ? मैं उनका उत्तर दूसरे ढंग से सोचता हूँ कि अगर संघ नहीं होता तो क्या होता ? देश का 90 वर्ष का इतिहास देखते है, एक प्रकार से पीछे मुड़कर देखते हैं तो ध्यान में आता है कि देश के हर मोड़ पर संघ खड़ा है। चाहे स्वतंत्रता का संघर्ष हो, देश विभाजन की घड़ी हो, स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान से आये निराश्रितों के सहयोग की बात हो, विदेशी आक्रमणों के समय की बात हो, देश में प्राकृतिक आपदाएं, मानस सर्जित दुघर्टनाएं हो, अकाल, बाढ़, मूंकप आदि घटनाओं के समय पीड़ितों की सेवा हो, एक प्रकार से राष्ट्र के समक्ष संकट की हर घड़ी में, समाज के सुख, दुःख में एवं मानवता की सेवा के लिए संघ हमेशा प्रतिबद्धता से खड़ा दिखाई देता है। इसी प्रकार संघ या संघ से प्रेरणा पाकर स्वयंसेवकों ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में वहाँ- वहाँ की आवश्यकताओं के अनुसार सकारात्मक परिवर्तन कर भारतीय चिन्तन को आधार बनाकर एक नई व्यवस्था की पुनः स्थापना करने के प्रयास एवं सेवा के कार्य किये है। इसमें महत्वपूर्ण एवं आधारभूत क्षेत्र है शिक्षा। इस लेख में इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।

      वास्तव में तो संघ की शाखा ही जीवन की शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र है परन्तु जिसमें हम औपचारिक यानी विद्यालय /महाविद्यालय / विश्वविद्यालय एवं शैक्षिक संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा की दृष्टि से विचार करें तो इस दिशा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, भारतीय शिक्षण मंडल, संस्कृत भारती, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ एवं शिक्षा बचाओ आन्दोलन तथा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा देश की शिक्षा को सही दिशा देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    स्वतंत्रता के बाद सोची समझी साजिश के तहत एक भ्रम फैलाया गया कि अंग्रेजों के आने के बाद ही वास्तविक देश बना है। इस कारण से शिक्षा सहित सारी व्यवस्थाएं भी उनकी ही देन हैं अन्यथा भारत तो गडरियों का अंधश्रद्धा पर विश्वास रखने वाला देश था परन्तु वास्तविकता क्या है ? शिक्षा क्षेत्र का ही विचार करते है तो गांधी विचारक, श्री धर्मपाल ने अपनी पुस्तक "वट वृक्ष का बीज" (दी ब्यूटीफुल ट्री) में अंग्रेज अधिकारियों एवं विद्वानों के द्वारा लिखित दस्तावेजों को आधार बनाकर प्रमाण के साथ लिखा है। पूर्व पादरी श्री विलियम्स एडम ने किये सर्व के अनुसार तत्कालिक बंगाल राज्य में एक लाख से अधिक पाठशालाएं थी। इसी प्रकार मद्रास प्रेसिडेन्सी में हर गांव में पाठशालाएं थे।

      एक प्रकार से लगभग 600-700 वर्षों के आक्रमण के बाद हमारे देश की शिक्षा की स्थिति यह थी तो इसके पूर्व तो इससे कई अधिक अच्छी स्थिति थी। चीनी यात्री हेवन्सांग जैसे अनेक विदेशी विद्वानों के कथन से यह बात और स्पष्ट होती है। उस समय विश्व में किसी को भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करनी होती थी तब वह भारत आते थे। दुनिया में विश्वविद्यालय संकल्पना नहीं थी तभी भारत में तक्षशिला, विक्रमशिला, नालन्दा आदि विश्वविद्यालय थे। परन्तु अंग्रेजों के द्वारा भारत की शिक्षा की श्रेष्ठ परंपरा को जड़-मूल से नेस्त-नाबूत करने के प्रयास के परिणामस्वरूप आज भी देश की शिक्षा की वास्तविक दिशा तय नहीं हो पाई है।

      इस परिस्थिति में संघ प्रेरित शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठनों ने सबसे प्रथम कार्य देश के लोगों में विशेष करके तथाकथित पढ़े-लिखे विद्वान लोगों के मानस को बदलने हेतु व्यापक जन-जागरण अभियान चलाकर देश में अंग्रेजों ने दी हुई शिक्षा व्यवस्था को बदलने का मानस तैयार करने का सफल प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप देश की शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन का वातावरण निर्माण हुआ है। इसका प्रमाण राष्ट्रीय शिक्षा नीति-20 20 है।

     इसके साथ-साथ शिक्षा की भारतीय आधारभूत संकल्पनाओं की पुर्नस्थापना करने हेतु ठोस कदम उठाये। आज देश में शिक्षा को व्यवसाय का स्वरूप मान लिया गया है ऐसी परिस्थिति में विद्याभारती द्वारा देश में 13,000 से अधिक विद्यालय एवं हजार एकल विद्यालय स्थापित करके छात्रों से सामान्य शुल्क लेकर शहरों से लेकर जनजातीय क्षेत्र, गिरि-कन्द्राओं में विद्यालय स्थापित करके शिक्षा यह व्यापार, व्यवसाय न होकर सेवा का माध्यम है इस आदर्श को स्थापित करने में अहम् भूमिका का निर्वाह किया है।

    इसी कड़ी में शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विद्याभारती ने अपने विद्यालयों में भारतीय भाषाओं को माध्यम बनाकर व्यवहारिक रूप देने में काफी मात्रा में सफलता प्राप्त की है। शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए इस हेतु भारतीय शिक्षण मंडल, सहित सभी संगठनों ने विभिन्न माध्यमों के द्वारा व्यापक जन जागरण करके देश में इस तथ्य को स्थापित करने का प्रयास किया है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा इस हेतु भारतीय भाषा मंच एवं भारतीय भाषा अभियान प्रारंभ करके भारतीय भाषा पर कार्य करने वाले विभिन्न संगठनों एवं विद्वानों तथा भाषा प्रेमियों को एक मंच पर लाकर परिणामकारक कार्य प्रारंभ किया है तथा न्यायालयों सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय भाषा में कार्य हो इस हेतु सफलतापूर्वक अभियान चलाया है।

     सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को मृतप्राय घोषित करने के प्रयास के विरूद्ध संस्कृत भारती ने देश में व्यापक जन-जागरण एवं साहित्य प्रकाशन से लेकर संस्कृत संभाषण शिविरों का हजारों की संख्या में देश-विदेश में आयोजन करके संस्कृत मृतप्राय भाषा नहीं है परन्तु संस्कृत विश्व की सर्वश्रेष्ठ एवं प्राचीन भाषा है इस दृष्टिकोण को पुनः स्थापित करने हेतु ठोस कदम बढ़ाये हैं।

     इसी प्रकार उच्च शिक्षा के संस्थानों में भारतीयता के आधार पर परिसर संस्कृति का विकास हो एवं आज का छात्र आज का नागरिक है इस हेतु छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपनी नागरिक की भूमिका का भी निर्वाह करे एवं देश की छात्र शक्ति, राष्ट्र शक्ति बने। इस प्रकार अनुशासनबद्ध छात्र शक्ति के निर्माण द्वारा राष्ट्र के पुन निर्माण की दिशा में ठोस कार्य अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा किया जा रहा है। इसी के परिणाम स्वरूप परिषद् से जुड़े हुए छात्रों के द्वारा उच्च शिक्षा में भारतीयता को स्थापित करने हेतु भी संगोष्ठी, परिचर्चाओं एवं परिसंवादों के माध्यम से कार्य करते हुए समय-2 पर विभिन्न राज्य एवं केन्द्र सरकारों के समक्ष देश की शिक्षा नीति के संदर्भ में ठोस सुझाव भी प्रस्तुत किये है। जिसमें से कई के ठोस परिणाम भी आये है।

     शिक्षकों का यूनियन न हो परन्तु संगठन हो इस प्रकार का प्रयास अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के द्वारा किया जा रहा है। इसी हेतु उनका ध्येय वाक्य है, "राष्ट्र हित में शिक्षा, शिक्षा के हित में शिक्षक, शिक्षक के हित में समाज।' इस माध्यम से देश के शिक्षक मात्र कर्मचारी नहीं है परन्तु वह आचार्य, गुरु की भूमिका में है। इसके पुनः स्मरण हेतु शिक्षक कर्तव्यबोध एवं गुरु वन्दना जैसे शिक्षकों को प्रेरणा देने वाले कार्यक्रमों के आयोजन के द्वारा शिक्षक संगठन को एक नई दृष्टि देने का सफल प्रयास किया है।

    भारतीय शिक्षा मंडल ने अपने स्थापना काल से ही शिक्षा में भारतीयता को लाने हेतु संगोष्ठियों, परिसंवादों के माध्यम से देश में वातावरण बनाने का प्रयास किया है। इस हेतु 1986 की शिक्षा नीति से लेकर वर्तमान में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्णय में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साथ ही शिक्षा क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान, देश की आवश्यकता के अनुसार गुणवत्ता पूर्ण हो, भारत मे गुरुकुल परम्परा को पुनस्थापित करने की इस दिशा में भी ठोस प्रयास प्रारंभ किये है।

     देश की शिक्षा के पाठ्यक्रमों में विकृतियां, विसंगतियां यह अंग्रेजो की देन है। इसी परंपरा को अपने ही देश के मार्क्स, मैकॉले के मानस पुत्रों ने शिक्षा को आगे बढ़ाया । इस प्रकार पाठ्यक्रम में देश की संस्कृति, धर्म, महापुरूषों, भाषा एवं परम्परा को जो अपमानित किया जा रहा था इसके विरूद्ध में शिक्षा बचाओ आन्दोलन ने आन्दोलन चलाकर सफल प्रयास किया इसके परिणामस्वरूप पाठ्यक्रम देशव्यापी बहस का विषय भी बना। इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन करके देश की शिक्षा में नए विकल्प देने की दिशा में ठोस कार्य प्रारंभ किया गया। न्यास के द्वारा बहुत ही अल्प समय में शिक्षा के आधारभूत आयामों पर पाठ्यक्रम तैयार करने से लेकर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में परिणामकारक प्रयोग प्रारंभ किये है। जिससे भारतीयता के आधार पर शिक्षा के वैकल्पिक स्वरूप का चित्र स्पष्ट हुआ है एवं शिक्षा क्षेत्र में भारतीयता के आधार पर परिवर्तन हो सकता है। इसका विश्वास निर्माण हुआ है।

 

      शिक्षा क्षेत्र में संस्था के रूप में तो कार्य 1948 से प्रारंभ हुआ परन्तु संघ के स्थापना काल के तुरन्त पश्चात डॉ. हेडगेवार जी की प्रेरणा से नागपुर में ही शैक्षिक संस्थाओं की शुरूआत हो गई थी इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए आज देशभर में अनेक स्वयंसेवकों के द्वारा हजारों शैक्षिक संस्थाओं का संचालन किया जा रहा है। इसी प्रकार विश्व हिन्दू परिषद् एवं विद्याभारती के द्वारा हजारों की संख्या में जनजातीय क्षेत्र में एकल विद्यालय चलाये जा रहे है। उसी क्रम में वनवासी कल्याण आश्रम एवं राष्ट्रीय सेविका समिति के द्वारा भी विद्यालय चलाये जा रहे है। यह सभी प्रकार के प्रयास देश की शिक्षा के उत्थान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है।

 

     एक प्रकार से संघ विचार से प्रेरित शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत संगठनों ने शिक्षा की आधारभूत संकल्पनाएं “ चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास, मूल्य आधारित शिक्षा, शिक्षा में नैतिकता एवं आध्यात्मिकता, शिक्षा की स्वायत्तता, मातृभाषा में शिक्षा, शिक्षा में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश, पाठ्यक्रम में व्यवहारिकता, रोजगार सृजन करने वाली शिक्षा, शिक्षा व्यवसाय न होकर सेवा का माध्यम, आदर्श शिक्षको का निर्माण आदि के सैद्धांतिक धरातल के विकास के साथ व्यवाहारिक प्रयोग करके आदर्श प्रतिमान खड़े करने की दिशा में भी ठोस कार्य किया है। एक प्रकार से भारतीय शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतो के साथ-साथ आधुनिकता के अनुरूप एक नई शिक्षा व्यवस्था देश में स्थापित हो इस दिशा में कार्य किया जा रहा है।

 

     इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए भविष्य में देश में शिक्षा प्राथमिकता का विषय बने, उपरोक्त चिन्तन एवं दिशा में कार्य करने वाले देश की शैक्षिक संस्थाओं को एक मंच पर लाना, शिक्षा राजनीति एवं विचारधारा से ऊपर उठकर देश में सहमति बनाने का प्रयास करना, शिक्षा हेतु समाज और सरकार साथ मिलकर कार्य करे। सरकारी शैक्षिक संस्थाओं की गुणवत्ता सुधार हेतु विशेष प्रयास किये जाए। इससे देश की शिक्षा का स्वरूप इस प्रकार का बने जिससे शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास एवं राष्ट्रीयता के भाव जागरण द्वारा वह देश एवं समाज के उत्थान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके। इसके द्वारा भारत पुनः उत्तम चरित्र से युक्त सम्पन्न, समृद्ध एवं सशक्त राष्ट्र बन सके इस दिशा में कार्य करने की योजना पर कार्य प्रारम्भ किया गया है। जब तक देश की शिक्षा नहीं बदलेगी तब तक देश में वास्तविक बदलाव असंभव है। इस दिशा में देशव्यापी जनजागरण करते हुए इस संकल्पना को साकार करने हेतु संघ एवं शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत संगठन आज भी कटीबद्ध है और जब तक यह कार्य सम्पन्न नहीं होगा तब तक यह यज्ञ स्वरूप कार्य जारी रहेगा।

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