संदेश 

 

व्यक्ति व्यापक परिधि के विविध अंशो में परिवार, पड़ोस, राष्ट्र, विश्व, समस्त सृष्टि और परमेष्टी की एक लघु इकाई है। यह सप्तपदी यात्रा मानव को पूर्ण मानव की संज्ञा प्रदान करती है। इस परम लक्ष्य को प्राप्त करने योग्य समग्र मानव निर्माण करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।

भारतीय शैक्षिक उद्देश्य का सम्बन्ध इस देश की धरती से रहा है। इसको प्राप्त करने के लिये अनेक मनीषियों, चिन्तकों तथा आचार्यों ने जीवन की प्रयोगशाला में अनेक प्रयोग कर हमें सांस्कृतिक धरोहर प्रदान की है जिसके परिणाम स्वरूप हमारा देश विश्व वन्दनीय कहलाया था।

वर्तमान शिक्षा ने बुद्धि निर्धन, शरीर पंगु तथा मन भग्न कर दिया है। उद्देश्यहीन आज की शिक्षा आधुनिकरण के नाम पर पाश्चत्यीकरण की ओर प्रवृत्त है। भारतीय दर्शन तथा जीवन के परम लक्ष्य के साथ इसका कोई सम्बन्ध नही। परिणामतः अराजकता दिखाई देती है।

आवश्यकता है शिक्षा के भारतीयकरण की, वैकल्पिक शिक्षा नीति की, जिसका आधार राष्ट्रीय जीवन मूल्य तथा इसकी संस्कृति होगी।

शैक्षिक उदेश्यों की पूर्ति के लिये अध्यापक नहीं आचार्य चाहिये जो अपने "आचरण से बालकों को शिक्षा दे सकें। अध्यापन, सीखने तथा सिखाने की दोहरी प्रक्रिया है। तेजस्वीनामवधीतमस्तुमा... गुरु और शिष्य दोनों का ज्ञान तेजमय हो । शिक्षा की इस प्राचीन संवादात्मक शैली को आज प्रगतिशील देश भी अपनाने लगे हैं। अतः आचार्य को इस विधि का अनुसरण कर कार्य में सुधार लाना चाहिए।

शिक्षा, मूल्य सृजन, राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता प्रस्थापित करने का प्रबल साधन है। ऐसी शिक्षा पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बननी चाहिए। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस ओर ध्यान न देने के परिणाम हम भोग रहे हैं। शीघ्र ही शब्दों के सही अर्थ तथा भाव प्रकट करने होंगे और उन पर जीवन खड़े करने का प्रयास अत्यन्तावश्यक है। किसी विद्यालय की सफलता को मापने का आधार परीक्षा परिणाम नही अपितु शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति ही है। विद्यालय का लक्ष्य बालक के शरीर, प्राण, मन, बुद्धि तथा आत्मा का विकास है। इनको आंकना ही संस्था का सही तथा सच्चा मूल्यांकन है।

 
 

 श्री दीनानाथ बत्रा - राष्ट्रीय अध्यक्ष 

 


 

संदेश 

 

क्या आप देश की शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन चाहते हैं? क्या आप यह चाहते हैं कि सभी प्रकार की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त हो ? क्या आप यह भी चाहते हैं कि शिक्षा अपने समाज एवं देश की आवश्यकताओं को पूर्ति करने वाली हो? क्या आप चाहते हैं कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान करने वाली हमारी शिक्षा-व्यवस्था हो? क्या आप राष्ट्रभक्ति से युक्त व भारत को आत्मनिर्भर एवं विश्वगुरु बनाने वाली शिक्षा चाहते हैं? तो इसके लिए आवश्यकता है- छात्रों के चरित्र निर्माण एवं उनके व्यक्तित्व के समग्र विकास करने वाली शिक्षा, मूल्य - आधारित शिक्षाकी, योग शिक्षा की, पर्यावरण संरक्षण करने वाली शिक्षा की, भौतिकता एवं आध्यात्मिकता का समन्वय करने वाली शिक्षा की, भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आधुनिकता का समन्वय करने वाली शिक्षा की व्यवसाय - परक एवं कौशलयुक्त शिक्षा से छात्रों को स्वावलंबी बनाने वाली शिक्षा की। इन्हीं संकल्पनाओं के अनुरुप देश की शिक्षा का स्वरूप खड़ा हो, इसी दिशा में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास प्रयासरत है।

न्यास का मानना है कि " देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा " इस हेतु “समस्या नहीं समाधान" की दिशा में कार्य करना होगा तथा "माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता"। इन्ही ध्येय वाक्यों को आधार बनाकर, देश की शिक्षा को एक नया विकल्प देने हेतु न्यास कृत संकल्प है। हमारा यह भी मानना है कि यह भागीरथी प्रयास किसी एक संस्था, संगठन से संभव नहीं होगा। इस हेतु न्यास शिक्षा के हित चाहने वाली संस्थाओं, विद्वानों एवं नागरिकों को एक मंच पर लाकर सामूहिक प्रयास में विश्वास रखता है। इस वेबसाइट में इसी दिशा में किए जा रहे व्यावहारिक प्रयास एवं सैद्धांतिक आलेख, प्रारूप, शोध-पत्र आदि को एक स्थान पर उपलब्ध कराने का प्रयास है। आप भी इस वेबसाइट के माध्यम से शिक्षा परिवर्तन के इस यज्ञ में अपनी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष आहुति दे सकते हैं।

 
 

डॉ. अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव