किशोरवयी की समस्याएं एवं समाधान
युवा किसी भी देश का भविष्य माने जाते हैं यदि युवाओं का सही दिशा प्रदान कर उनकी ऊर्जा सकारात्मक कार्य...
मनुष्य जीवन में किशोरावस्था अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. यहाँ से एक प्रकार उसके जीवन की दिशा तय होती है। यदि किशोर को उचित मार्गदर्शन मिलता है तो यह उचित रास्ते पर जाता है परंतु वर्तमान में सामाजिक एवं भौतिक परिणामों के स्वरूप इस अवस्था का बालक, दिग्भ्रमित होते दिख रहे हैं, जिसके कारण इस आयु वर्ग के बालकों में मारपीट, लुट, नशीली वस्तुओ का सेवन कर, बलात्कार, हिंसात्मक कार्यो में संलग्नता पायी जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि उनके विकास की सही दिशा एवं उनकी समस्याओं की ओर आवश्यक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किशोरावस्था जीवन का ऐसा मोड़ है जहाँ से आगे के जीवन की दिशा निर्धारित होती है। आज विश्व में भारत एक युवा देश है, अतः किशोरो की समस्या एवं समाधान पर विचार करना आवश्यक हो गया है। किशोरवय के बालकों की समस्याओं पर विचार करते हुए हमारा ध्यान निम्न बिन्दुओं पर जाता हैl
(1) वर्तमान समय में किशोरवय की उम्र क्या हो?
(2) वातावरण बदलावों का परिणाम-समस्या
(3) किशोरवयी विशेषताएं
(4) समाधान
(1) वर्तमान संदर्भ में किशोरवय की उम्र क्या हो?
सामान्यतः 13 से 18 वर्ष के आयु के बालक को किशोर माना जाता है। परंतु वर्तमान में बदली हुई परिस्थितियों के कारण इस अवस्था में परिवर्तन आवश्यक हो गया है क्योंकि सामाजिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आज का बालक जल्दी ही किशोरवय की अवस्था प्राप्त कर लेता है। किशोरवय की उम्र के निर्धारण के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना है
1. सामाजिक दृष्टिकोण
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
1. सामाजिक दृष्टिकोण - वर्तमान सामाजिक परिस्थिति में आज का बालक जल्दी ही युवा हो जाता है, क्योंकि न पान, रहन-सहन में अत्यधिक परिवर्तन आ गया है। भौतिकतावादी दृष्टिकोण के कारण यह समस्या अधिक आ रही है
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण - खानपान एवं बदलती हुई परिस्थितियों के कारण शारीरिक परिवर्तन बालकों में जल्दी आ जा रहा है, अतः किशोर की उम्र का निर्धारण करते समय शारीरिक परिवर्तन के साथ वैज्ञानिक परिवर्तनों को भी ध्यान में रखना होगा।
सामान्यत: उपरोक्त बातों के आधार पर वर्तमान समय में 12-16 वर्ष आयु समूह के बच्चों को किशोरवय की का माना जा सकता है।
(ख) किशोरवय की विशेषताएँ- किशोरावस्था सामान्यतः मानव जीवन की वह अवस्था होती है जिसमें किसी भी बालक में सामान्यतः शेष जिनका सम्यक मार्गदर्शन द्वारा दिशा दी जा सकती है अन्यथा किशोरावस्था में भटकाव की अधिक संभावना होती है। किशोरों में कई सकारात्मक बाते पायी जाती हैं, परीक्षण करके उचित दिशा देने का प्रयास किया जाना चाहिए। सामान्यतः किशोरों में निम्न सकारात्मक पाई जाती है।
1. इस अवस्था में जिज्ञासु प्रवृत्ति पायी जाती है।
2. अत्यधिक ऊर्जा (सुपर एनर्जी) होती है।
3. अनुकरण प्रिय प्रवृत्ति पायी जाती है।
4. सूचनाओं की भर पूरता होती है।
5. आदर्शवादी प्रवृत्ति पायी जाती है।
6. रचनात्मकता होती है।
7. प्रतिस्पर्धा का भाव होता है।
8. इस आयु वर्ग में सजावट, बनावट व दिखावट की प्रवृत्ति पायी जाती है। परंतु इसके साथ ही इस आयुवर्ग के बालकों में उग्रता, असुरक्षा की भावना, प्रतिरोध, प्रतिक्रिया का मानस, असामाजीकरण की प्रवृत्ति पायी जाती है। वस्तुतः यह अवस्था, वय-संधि की अवस्था मानी जाती है जिसमें " बचपन जाता नहीं है और जवानी आती नहीं है।" यह अवस्था शारीरिक, मानसिक बदलावों के परिवर्तन के कारण किशोरों में नकारात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। सामान्यतः बालकों में अपने अभिभावकों के प्रति "आपको पता है तो मैं भी जानता है" ऐसी मानसिकता रहती है।
(ग). वातावरण / बदलावों का परिणाम-समस्या- किशोरावस्था में बालक दो प्रकार के परिवर्तनों से प्रभावित होता है. शारीरिक व मानसिक समस्या को परिवार, विद्यालय एवं समाज के स्तर पर समझने का प्रयास करना चाहिए।
1. पारिवारिक स्तर पर पिछले कुछ वर्षों से संयुक्त परिवार क्रमशः घटते जा रहे हैं तथा एकल परिवारों में माता पिता के पास समयाभाव होता है जिससे बालक कुंठा व निराशा की ओर बढ़ता है। माता-पिता बच्चों को सभी संसाधन व सुविधा तो प्रदान करते हैं परंतु उनके लिए समय कम दे पाते हैं।
2. विद्यालय स्तर पर वर्तमान शिक्षण पद्धति किशोरों में कई समस्याएँ उत्पन्न कर रही है। आजकल विद्यालय में बालकों में अध्ययन के प्रति स्वाभाविक रूचि न उत्पन्न करके पाठ्य सामग्री को रटने एवं परीक्षा में अच्छे अंक के लिए दबाव बनाया जाता है जिससे बालक अपने को प्रतिस्पर्धा में कमजोर पाता है और वह हताश तथा कुंठा की ओर बढ़ता जाता है।
3. सामाजिक स्तर पर आज जन संचार के माध्यमों के अतिविकास के कारण बालकों को वह दिखाया, सुनाया या समझाया जाता है, जिसकी सम्भवतः उनको आवश्यकता नहीं होती है। किशोर में समाज में प्रचलित भौतिक संसाधनों को प्राप्त करने एवं उनका उपयोग करने की अति आतुरता की प्रवृति पायी जाती है। लुभावने विज्ञापनों एवं सूचनाओं द्वारा किशोरों को आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है। प्रायः इन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए किशोर गलत कदम उठाते हैं।
(घ). समाधान- यह बात स्पष्ट है कि किशोर को सही समय पर सही रास्ते पर ले जाने का प्रयास किया जाए तो उसके जीवन की दिशा बदल सकती है। इसके लिए मुख्यतः निम्र प्रयास किए जाने चाहिए
पारिवारिक स्तर पर - परिवार बालक की प्रथम पाठशाला होती है, जहाँ वह जन्म से ही सीखने का प्रयास करता है, अतः परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। पारिवारिक स्तर पर निम्न प्रयास किए जाने चाहिए:
• बालको/ किशोरों को पारिवारिक एवं सामाजिक समारोहों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना, जिम्मेदारी व सहभागिता के लिये प्रोत्साहित करना।
• संयुक्त परिवार के विकल्प के लिए सामाजिक वातावरण इस प्रकार बनाया जाये कि पारिवारिक भावना का विकास हो।
• परिवार के बुजुर्गों को अपना स्वयं का व्यवहार संयमित रखना चाहिए क्योंकि बालक यह सब अनुकरण करता है।
• सांसारिक मूल्यों की प्रवृत्ति अन्तःकरण में विद्यमान होती है। इसे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। पारिवारिक माधुर्य एवं सम्प्रेषण को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
• किशोरों की प्रवृत्ति का परीक्षण करके उसकी सकारात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए। सत् साहित्य को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। परिवार में संवाद व स्नेह का माहौल रखना चाहिए।
• परिवार में बालकों की अनुचित मांगों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। बालकों पर किसी भी अनावश्यक दबाव का निर्माण नहीं करना चाहिए क्योंकि माता-पिता बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षा थोपते हैं।
• घर का वातावरण संस्कार क्षम होना चाहिए। सभी बालकों को शरीर की रचना अंगोपांग, उसकी प्रकृति के पास ले जाने का कार्य करना चाहिए।
• उसके मित्रों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए।
• कार्य पद्धति के बारे में आवश्यक जानकारी देनी चाहिए।
• घर के सदस्यों को उसका सम्मान करने एवं उसकी भी राय जानने का प्रयास करना चाहिए।
• घर में भजन भोजन, टी.वी. देखने आदि कार्य एक साथ मिलकर करना चाहिए।
इसके साथ ही परिवार द्वारा बालकों को उनमें होने वाले शारीरिक परिवर्तनों एवं उसके परिणाम के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए क्योंकि इन शारीरिक परिवर्तनों को लेकर बालक के मन में कई प्रश्न होते हैं, जिसका समाधान न किया गया तो वह गलत रास्ते पर भी जा सकता है।
विद्यालय के स्तर पर- विद्यालय में बालकों का चरित्र निर्माण होता है अतः शिक्षकों एवं विद्यालय की भूमिका परिवार मे भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। विद्यालय स्तर पर निम्न प्रयास किए जाने चाहिए’
• छात्रों की रूचि के विषयों की ओर प्रवृत करना।
• आचार्यों द्वारा संवाद को प्रभावी बनाना चाहिए।
• प्रयोग छापो की प्रवृत्ति को जानने का प्रयास करना चाहिए।
• शिक्षण पद्धति में गुणात्मक सुधार करके उनमें सकारात्मक प्रवृत्ति का विकास करना इस हेतु शिक्षक-शिक्षण का पाठ्यक्रम बने
• नैतिक शिक्षा को वातावरण एवं आचरण के माध्यम से शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए। तुलनात्मक प्रवृत्ति से छात्रों को दूर रखने का प्रयास करना चाहिए
• विद्यालयों में विमर्श केन्द्र का प्रावधान हो जहां पर छात्रों की समस्याओं का समाधान हो की पढ़ाई एवं व्यवसाय सम्बन्धित मार्ग दर्शन प्राप्त हो।
• विद्यालयों में किशोर की सुपर एनर्जी को रचनात्मकता, रुचि, शारीरिक व्यायाम एवं प्रकृति के अनुसार जोड़ना चाहिए।
• बालको को परिवार एवं विद्यालय में कोई भी विषय तार्किकता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास करना चाहिए।
• पुस्तकालय में अच्छी पुस्तकों का संचय होना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर-
आज किशोर अधिकतर गलत प्रवृत्ति समाज एवं मीडिया के माध्यम से सीखता है ऐसी स्थिति में समाज तथा मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। किशोर समाज में प्रचलित बुराइयों को शीघ्रता से ग्रहण करता है। अतः सामाजिक स्तर पर निम्र प्रयास करना चाहिए
• सामाजिक समरसता सहकारिता, परोपकार को बढ़ाने वाली प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए।
• सामाजिक सौहार्द को बढ़ाने के प्रयास करना चाहिए।
मीडिया एवं जनसंचार के स्तर पर - वर्तमान में मीडिया द्वारा जो कुछ दिखाया जाता है किशोर उसे अत्यंत रुचि एवं उत्साह से देखता है एवं उसका अनुसरण करने का प्रयास करता है, अत: मीडिया को निम्न प्रयास करना चाहिएl
• मीडिया द्वारा छात्रों को सही एवं सत्य की जानकारी दी जानी चाहिए तथा ऐसी बातों को प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए जिससे युवाओं में हिंसात्मक प्रवृत्ति का विकास हो।
• जनसंचार तथा सिनेमा के माध्यम से लोक सुभावने विज्ञापनों का प्रचार एवं प्रसार नहीं करना चाहिए।
• अश्लील एवं सस्ते प्रचार के माध्यम के तरीकों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
• जनसंचार के माध्यमों द्वारा राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक गौरव चिन्हों के प्रति सम्मान तथा राष्ट्रीय भावना का प्रसार करना चाहिए।
• सृजनात्मकता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
अतः युवा किसी भी देश का भविष्य माने जाते हैं यदि युवाओं का सही दिशा प्रदान कर उनकी ऊर्जा सकारात्मक कार्यों में लगायी गायी तो राष्ट्र विकास की ओर बढ़ेगा अन्यथा राष्ट्र में हिंसा, लूट, अशांति बड़ेगी जोकि किसी भी सभ्य राष्ट्र के साथ-साथ मानवता के भी विरुद्ध होगा। हमें सभी प्रकार के सभी स्तरों पर किशोरों को सही रास्ता देने का प्रयास करना चाहिए। जिससे राष्ट्र उन्नति के पथ पर आगे बढ़े तथा गौरवशाली बने ।