विख्यात गणितज्ञ श्री निवास रामानुजन

16वर्ष की आयु में विख्यात गणितज्ञ जी.एस. कार की पुस्तक में से ज्यामिति एवं बीजगणित के प्रमेय एवं स...

श्रीनिवास रामानुजन गणित के क्षेत्र में ध्रुव तारे के समान आज भी चमक रहे हैं। 98  वर्षो  के  बाद भी उनके द्वारा 32 वर्ष  4 मास एवं 4 दिन के छोटे  से जीवनकाल में गणित के क्षेत्र में जों कार्य  किया गया उसे सिद्ध करने के लिए दुनिया के गणित के विद्वान आज भी प्रयासरत हैं। रामानुजन ने 13 वर्ष  की उम्र से ही अनुसंधान कार्य शुरु किया था एवं 15 वर्ष  की उम्र में  स्वयं किये हुए कार्य  को नोटबुक में लिखने की शुरुआत की थी। एक प्रकार से कहना है  वह  गणित कों लेकर ही जन्मे थे, गणित के लिए ही जीवन भर समपर्ण  भाव से कार्य किया और आमरण  वह इसी कार्य में लगे रहे। वे बहुत अधिक बीमार थे, उस समय प्रा. हार्डी  उनसे मिलने के लिए गये।  जाते समय रास्ते वे वह सोच रहे थे कि रामानुजन का स्वास्थ्य खराब होने के कारण आज गणित  की कोई बात नहीं करुँगा। कुछ हल्की-फुल्की बातें करना अच्छा रहेगा। जब वे रामानुजन से मिले  तों  उन्होंने कहा कि मैं जिस टैक्सी से आया उसका नम्बर 1729 था जों अपशकुन संख्या है।  रामानुजन ने तुरन्त कहा नहीं-2 ‘‘यह संख्या  छोटी से छोटी संख्या है, जिसे दो भिन्न-2  रूपों में दो  सन्खायों के घन के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। वह इस प्रकार हैः- 1729त्र 10  $9  त्र 12 1  । विख्यात गणितज्ञ प्रो. लिटिलवुड का ठीक ही कहना था कि रामानुजन प्रत्येक  संख्या के मित्र थे। 

 स्वदेश वापस लौटने के बाद असाध्य बीमारी की अवस्था में भी उनकी गणित की साधना  चलती रही। उनकी पत्नी जानकी देवी के शब्दों में कहें तों ‘‘वे पूरे समय पथारी में रहने के कारण  उनकी पीठ एवं पैर में दर्द होता था। परन्तु उसकी परवाह किये बिना रामानुजन कहते थे कि मुझे  तकीया लगाकर बिठा दो और  बाद में स्लेट और पेन मांगकर गणित के अनुसंधान कार्य करने में मग्न हों जाते थे। मृत्यु के दो मास पूर्व 12 जनवरी 1920 को प्रो . हार्डी  को अंतिम पत्र लिखा उसमें भी  उन्होंने ने ‘‘माँक थीटा फंक्शन’’ ‘‘माक थीटा फंक्शन’’ ‘‘माँक थीटा फंक्शन’’ पर मिले परिणाम को  भेजा था। 

 रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 के दिन उनके मामा के घर तमिलनाडु के इरेड में  हुआ था। उनके पिताजी श्रीनिवास आयंगर तंजाऊर जिले के कुम्भकेणम गांव में कपड़े की दुकान में  मुनीम का कार्य करते थे। परिवार की आर्थि क स्थिति अत्यंत सामान्य थी। उनकी माता कों मलताम्मल  धार्मि क प्रवृति की एवं परम्परावादी महिला थीं। 

 परिवार से मिले धार्मिक संस्कारो के कारण रामानुजन भी रोज सुबह पूजा-पाठ करते थे,  हमेशा धोती  पहनना, चोटी रखना आदि बातें उनके जीवन में दिखती थीं। जब रामानुजन के प्रो. हार्डी  के माध्यम से इंगलैंड जाने का निमंत्रण मिला तब उनकी माता ने स्पष्ट ना में उत्तर दिया।  क्येंकि उस समय गलत मान्यताओ  के कारण समंदर पार जाना अशुभ माना जाता था और विदेश में लोग मांस,मदिरा का सेवन करते हैं तो मेरे बच्चे पर भी कुसंस्कार का प्रभाव पड़ेगा। उनकी  कुलदेवी नामगिरी में अत्यंत श्रद्धा थी। 

 एक दिन सुबह उनकी माता ने कहा कि कल रात्रि में उनको कुलदेवी स्वप्न में आयी और  उसमें उन्होंने ने रामानुजन को ससम्मान  अंग्रेजो के बीच में बैठे देखा। बाद में कुलदेवी ने उनको आज्ञा  दी की वह पुत्र की इच्छा विरूद्ध कुछ भी न करे। तब उनकी माताजी ने रामानुजन को इंगलैंड जाने  की अनुमति दी। विदेश जाने से पूर्व रामानुजन ने भी माता को वचन दिया की वह भारतीय परम्परा

एवं धर्म  का पूर्ण  रूप से पालन करेंगे और हमेशा शाकाहारी भोजन ही लेंगे। इसके बाद 17 मार्च  1914 को इंगलैंड के लिए उन्होंने प्रस्थान किया। 

 रामानुजन पढ़ाई में काफी आगे थे। इस हेतु विद्यालयीन शिक्षा के समय उनको कई पुरस्कार  एवं छात्रवृतियाँ प्राप्त हुई थी। परंतु गणित में विशेष रुचि के कारण उस और अधिक ध्यान दे ने के  परिणामस्वरूप 11वीं की परीक्षा में वे गणित छोड़ कर सभी विषयों में अनुत्तीर्ण  हुए थे, परन्तु उनकी  गणित की उत्तरवही देखकर उनके शिक्षक भी आश्चर्यचकित थे। उन्होंने ने 16वर्ष  की आयु में विख्यात  गणितज्ञ जी.एस. कार की पुस्तक में से ज्यामिति एवं बीजगणित के प्रमेय एवं सूत्र हल कर लिए थे।  1902 में त्रिघात एवं चतुर्घा त समीकरण हल करने के तरीके  खोज निकाले थे। वह गणित में इतने  विद्वान थे कि उनके विद्यालय में 1200 छात्र थे, इस कारण से वहां के शिक्षकों को समय-सारिणी  बनाने में कठिनाई आती थी, वह कठिन कार्य रामानुजन ने सहजता से करके अपने वरिष्ठ सुब्बीयर को दिया। 

 ग्यारहवीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद परिवार की आवश्यकता के कारण वह टयूशन  करने लगे, बाद में विवाह हो जाने के बाद उनको कई स्थानों पर नौकरी हेतु भटकना पड़ा। इस  कारण से उनका गणित का कार्य भी प्रभावित होता था। परन्तु उन 6 वर्ष  के कठिन समय में उनकी  डिप्टी क्लेकटर रामस्वामी अय्यर प्रो. पी.वी. शेषु अय्यर, सी.वी राजगोपालचारी, रामचन्द्र राव आदि  विद्वानों से भेंट हुई और उन सभी के सहयोग से नौकरी के साथ-2 गणित का कार्य भी वह करते  रहे। 

 रामानुजन के जीवन में जिसकी अत्यंत महत्वपूर्ण  भूमिका रही वह कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के  प्रो. हार्डी  की थी। उन्होंने जब रामानुजन का गणितीय शोध कार्य देखा तब वह आश्चर्यचकित रह  गये।उन्होंनें ने ब्रिटेन के अन्य गणितज्ञो, भारत के अंग्रेज अधिकारियों तथा मद्रास विश्वविद्य़ालय के  अधिकारियों से विचार-विर्म श एवं आग्रह करके रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया। उन्होंने इंग्लैंड में  कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कालेज के फेलो के रूप में रामानुजन को प्रवेश कराने, छात्रवृति  दिलाने एवं अध्ययन तथा शोध कार्य में सब प्रकार से सहयोग किया। जिस रामानुजन को अपने देश  में 11वीं कक्षा की उपाधि नहीं मिली थी, वे विश्व के महान गणितज्ञ बनने में अपनी महत्ती भूमिका का  निर्वा ह किए। 

 रामानुजन 1914 से 1919 के दरम्यान इंग्लैंड में रहे। उस दरम्यान उनके जीवन में काफी  उतार-चढ़ाव आये। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण गणित के कार्य में रुकावट, खान-पान में कठिर्नाइ   (क्योंकि रामानुजन पूर्णतः शाकाहारी थे) अत्यधिक ठंड के कारण बीमारी आदि समस्याओ  के बीच भी  उन्होंने 37 शोध-पत्र प्रस्तुत किये। 

 रामानुजन को 19 मार्च 1916 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि दी गई। 6  दिसम्बर 1917 को  ‘‘फेलो ऑफ  लंदन मेथ मेटीकल सोसाइटी ’’ तथा फरवरी 1918 में केम्ब्रिज  यूनिवर्सिटी के सदस्य के रूप में वह नियुक्त हुए। मई 1918 में ‘‘फेलो ऑफ रायल सोसाइटी’’ बनने  का सम्मान प्रथम भारतीय के रूप में प्राप्त हुआ। 13 अक्टूबर 1918  को वह ट्रिनिटी कालेज के फेलो  चुने गये। इन घटनाओं से रामानुजन ने स्वयं को धन्यता का अनुभव किया ।क्योंकि उनके गुरू के  समान, प्रो. हार्डी  भी इसी पद पर ट्रिनिटी कालेज में कार्यरत थे। 

 श्री निवास रामानुजन ने 32 वर्ष  की छोटी आयु में जीवनभर संघर्षरत रहकर गणित के क्षेत्र में  सारी ऊचाईयाँ प्राप्त की। उनके किए हुए शोध कार्य का पार्टिकल फिजिक्स, कम्प्यूटर साईस,  क्रायप्टेग्राफी, पोलिमर केमिस्ट्री, परमाणु भट्टी, दूरसंचार, कम्यूनिकेशन नेटवर्क , घात, न्यूकिलयर  फिजिक्स, चिकित्सा विज्ञान आदि  क्षेत्रों में अनुप्रयोंग किये जा रहे हैं। उनके तीन हस्तलिखित नोट  बुक टाटा इन्स्ट्रीटयूट  ऑफ फन्डामेन्टल रिसर्च के द्वारा प्रकाशित किया गया। उनके द्वारा अंतिम  दिनों में जों कार्य किया था, वह अप्रैल 1976 में अमेरिका की विस्कोन्सीन यूनिवर्सिटी के विजीटिंग  प्रो. जार्ज  एन्ड्रयुज को ट्रिनिटी कालेज की पुस्तकालय में से अचानक 140 पृष्ठ मिल गये। प्रो.  एन्ड्रयूज ने यह सारे पेपर को  ‘‘जीम सवेज दवजम इववा वित्ंउंदनरंद’’ के नाम से प्रकाशित किया।

जिस पर आज भी दुनिया के महान गणितज्ञ कार्य कर रहे हैं। अभी-2 कुछ दिनों पूर्व अमेरिका के  गणितशास्त्री ने रामानुजन के अन्तिम पत्र में भेजे फोर्मुले को सिद्ध कर लिया है ऐसा दावा किया है।  इसी प्रकार 1921 में प्रसिद्ध हंगेरीयन गणितज्ञ ज्योंर्ज   पोल्या ने प्रो. हार्डी  से रामानुजन की नोंट बुक  कार्य करने हेतु ली थी। कुछ दिनों के वे प्रो. हार्डी  से मिलने आये और उन्होंने  नोंटबुक जल्दी में  वापस कर दिया। जब प्रो. हार्डी  ने कारण पूछा तों उन्होंने उत्तर दिया कि अगर मैं इसके परिणामों कों सिद्ध करने की मायाजाल में फंस गया तों  मेरा समग्र जीवन इसी में व्यस्त हों  जाएगा और मेरे  लिए स्वतंत्र शोध कार्य करना संभव ही नहीं होगा। 

 प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्श निक बट्रेड रसेल ने कहा कि प्रो. हार्डी  एवं प्रो. लिटिलवुड ने  ‘‘एक हिन्दू क्लर्क ’’ में दूसरे न्यूटन को खोज निकाला’ ‘‘एक हिन्दू क्लर्क ’’ ’। ए.पी.जे. अब्दूल कलाम ने कहा भारत ही  नही पूरे विश्व के गणितज्ञो के लिए रामानुजन निरंतर प्रेरणा स्त्रोत बने हुए है। प्रो. हार्डी  ने कहा  उन्होंने मेरे जीवन को  समृद्ध बनाया है, मैं  उनको कभी भूलना नहीं चाहता। प्रो. हार्डी  ने तत्कालीन  गणित के विद्वानों को 100 में से अंक दिये थे। जिसमें स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्म न  गणितज्ञ हिलवर्ड को 80 ओर रामानुजन को 100 अंक दिये थे। 

 रामानुजन ने इंग्लैण्ड के पांच वर्ष  के कार्यकाल में अनेक सम्मान प्राप्त किये, परन्तु अपने  जीवन की सरलता, सादगी और भारतीयता को उन्होंने वन में यथावत बनाये रखा था। प्रो. के  आनन्दराव तो रामानुजन के समय में ही किग्स कालेज में थे। उनके अनुसार इतनी प्रसिद्धि मिलने के  बाद भी वे स्वभाव से विनम्र थे, रहन-सहन मे सादगी थी । रामानुजन विदेश में भी अपने लिए स्वयं  ही भोजन बनाते थे। वे कहते थे, यदि कोई गणितीय समीकरण अथवा सूत्र किसी कहते थे, यदि कोई गणितीय समीकरण अथवा सूत्र किसीभागवत विचार से भागवत विचार से  मुझें नहीं भर देता,तो वह मेरे लिए निरर्थ क है।’’ मुझें नहीं भर देता,तों  वह मेरे लिए निरर्थ क है।’’ जब उनकी आर्थि क स्थिति ठीक नही थी, लिखते  समय कागज खत्म हों जाते थे तब लिखे हुए कागज पर लाल स्याही की मदद से सूत्र लिखने लगते  थे। नोंकरी के समय में पोर्ट ट्रस्ट के रास्ते में पड़े हुए कागज इकठठे करके उपयोंग करते थे।  चैन्नई विश्वविद्यालय से जब उनकों 250रुपये की छात्रवृति स्वीकार हुई, तब उन्होंने रजिस्ट्रार को  पत्र  लिखकर कहा की इसमें से मेरे घर का खर्च निकलने के बाद जों बच जाए वह गरीब विद्यार्थियों  के  सहायता कोष में जमा करा दें। 

 वर्ष  2011 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने श्रीनिवास रामानुजन के 125 वें वर्ष  निमित्त  राष्ट्रीय गणित वर्ष  घोषित किया था। तबसे भारत में 22 दिसम्बर को गणित दिवस मनाया जाता है,  परन्तु यह दुर्भा ग्यपूर्ण  स्थिति है की भारत में श्रीनिवास रामानुजन के कार्य पर विशेष अनुसंधान नहीं  किया जा रहा। केन्द्र एवं राज्यो की सरकारों तथा देश में गणित पर कार्य करने वाले विद्वानों एवं  विश्वविद्यालयों को इस पर चिंतन करके कुछ ठोस कार्य करने के बारे में विचार करना चाहिए। 

 श्री निवास रामानुजन का जीवन एवं कार्य मात्र भारत के ही नही  विश्व के गणितज्ञो, शिक्षकों  एवं छात्रों के लिए प्रेररणादायी है। 

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